बहते हुए नीर को थामा ह जो तुमने,
इस बहती हवा को रोका ह जो तुमने,
तेरे प्यार मे वो पवित्र ताकत थी बस,
की तुमने मुझ सी पगली पवन को,
प्यार की चार दिवारी मे कैद कर लीया ह,
एक अदृश्य दिवार सी ह, पर फिर भी,
उस दिवार के पार कुछ भी नजर,
आता नहीं ह, मुझे कुछ भी लुभाता,
बहलाता, और फुसलाता नहीं ह,
कोई रंगीनिया अब मुझे खींचती नहीं
कोई खुश्बू भी बदन को भींचती नहीं ,
तुम ही मुझे अपनी muthi मे किये हो
ए सजन तुम मेरे न हो के भी मेरे हो,
अब इस बहते नीर को समन्दर मिल गया ह,
अब मेरा भी आशियाँ बन गया ह,
बस ए रब, ये आशियाँ बनाये रखना
is बहते नीर को समन्दर मे समेटे रखना
1 comment:
bahtey hue neer ko thama hai tumne
bahti hawa ko roka hai tumne
koi ranginiya ab muje khichty nahi
koi khushbu bhi badan ko bheenchty nahi
wah wah..bahot umda...
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