एक स्वप्न देखा हा मैने,
तेरी गोद मै रहने का,
पर मै पगली, ये न जानू,
पल भर का ये प्रेम ह बस,
जनम जनम की पीडा हा,
प्रतीक्षा रत हु मै तो,
सोचु ये क्या उलझन ह?
मैं जो चाहू कह न पाओमैं जो चाहू कर न पाओ
जी भर के प्रेम अगन में,
प्रेम पतंगे सी मिटना चाहू,
पर मेरी किस्मत मै तो
न तो ये मिटना लिखा हा
न ही तुज्ह से मिलना लिखा हा
कैसे कारी, कजरारी सी
कलम भाग्ये की
सीधी रेखा मे मैं चलाओं
मेरी टूटी कलम मैं से पल पल
खून सा रिसता रहता
स्याही की जगह,
खून के आंसू हर पल
मैं रोती ही जाउं
क्या सच ही कठिन ह
इस कारी कलम को मिटाना
क्या सच ही मेरा भाग्य
कभी न बदलेगा?
क्या इस कारी कजरारी
सी कलम से नाता टूटेगा?
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