कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Saturday, August 9
Friday, August 1
चुप न रहो
बस अब कुछ और न चाहू
रहना तुम संग चाहू
और न कोई संगी साथी
न चाहिए कोई अब दीपक बाती
मेरी इचएं सब सम्पुर्ण हुई
तुमसे मिल मै पूर्ण हुई
मै जानू न तुमको कहना
पर जाने क्यों मुश्किल हा चुप रहना
मै रह नही पति अब तुम बिन प्रिय
सोच न पाऊ कुछ भी मै प्रीये
अब तुम ही कुछ तो जतन करो न
तुम चुप चाप मत रहो न
रहना तुम संग चाहू
और न कोई संगी साथी
न चाहिए कोई अब दीपक बाती
मेरी इचएं सब सम्पुर्ण हुई
तुमसे मिल मै पूर्ण हुई
मै जानू न तुमको कहना
पर जाने क्यों मुश्किल हा चुप रहना
मै रह नही पति अब तुम बिन प्रिय
सोच न पाऊ कुछ भी मै प्रीये
अब तुम ही कुछ तो जतन करो न
तुम चुप चाप मत रहो न
Subscribe to:
Posts (Atom)