Saturday, April 28

शेर

इश्क के गली से गुजरना,
ओर आग से गुजरना एक ,
ओर इस आग को पार करना,
ओर किसी को इकतरफा प्यार करना एक ..
इसलिये दील बस अब उनका इंतजार ओर ना कर
ना कर, बस बहुत हो चुका प्यार ओर ना कर...
बारीश...
बारिश की बूंदे गिरती जमी पार
सोंधी मिटटी की खुशबु फैलती कही पार
टप टप बूंदे गिरती सावन झूमता
मन मयूर मेरा भी इसमे झूमता

Friday, April 27

एक WARNAN

ek warnan.. fir se

aj subah ka akhbar meri ankho ke age tha
or usme kuch likha tha, likha kya tha?
kuch logo ne asmat ek bichari ki looti
or use ja feka, andhere jangal me
kya jante ho, kyu panata ha ye gunah?
me batati ho ise ab is warnan me..

ham rok jahan lagate ha, wo cheej
vikrtit roop se,ati ha samne,
pehre bitha rakhe ha, unchi diwaro ke hamne
vikrit dimago ke samne, pehle to parose jate ha
geet bharkte hue, fir une us gali jane se roka jata ha

pehle to une sikhane ke nam pe,
dhong kia jate ha, bate khuli dikhyi jati ha chalchitro me,
fir une na karo ye sab bola jata ha,
ye kadva nanga sach ha,
jaise bhookhe ke lia roti ki jarorat ha,
usi tarah is umr me, itni rok jarori nahi ha,
kyu hamra samaj dishavihin ha,
ek taraf dharam ki bate, ek taraf ye drishye gamgeen ha


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चराग

हर रोशन चराग के साथ, ओर हर दिल की आवाज के साथ
जाने क्यों ये दिल एक नाम पुकारा कर्ता ह,
वो जो दिल दीमाग पर नशे की तरह, छाया रहता ह,
वो मेरा हमदम तो नही, मगर साथ उसका साया रहता ह,
वो जख्मो पर मेरे मरहम रख दीया कर्ता ह,
जब भी मेरे दील मै कोई दर्द घर बनया कर्ता ह,
जब वो पास होता नही, जिन्दगी अधूरी लगती ह
जिन्दगी मै उसकी बातो का सरूर छाया सा रहता ह..

Thursday, April 26

पुनर्जनम,

कल जब मेरा मौत से होगा मिलन,
हँस कर गले लगाओंगी या होगा रुदन,
उस सख्त्कर की कीमत क्या होगी ,कीत्ने क्षण ,
रहेगा वो मिलान, सब अस्थिर सा होगा विचितार्सा,
कैसा होगा वो क्षणिक मिलन , विस्मृत सा कर जाऊंगी ये सब
जब होगा मेरा पुनर्जनम, ये अहसास राहे गा जन्म जन्म

याद

तेरी यादो की महकती खुशबू
मेरे साथ ह , पर तू नही
तेरे नाम का दीवानापन,
मेरे साथ ह पर तू नही
छुप सी गयी ह याद तेरी,
दिल मै, जैसे सीप का मोती
जल रही ह आग सी दील मै,
ओर आंख जार जार ह रओती.

तू ना आये तो भी ह क्या,
हम जला कर तेरी याद के ,
चरगो को, दील जला लेंगे अपना,
जैसे दीप की ज्योती...

ek sher

daag a dil ashko se dhula nahi karte,
jo pathar dil ha pighla nahi karte
kyu apni jaan jalati ho tum sakhi
mukadar ko badlo, yu roa nahi karte..

चराग रोशन हुए ह आज

चराग रोशन हुए ह आज, दीवाली सी लगती ह
आप के अने के खबर से ही ,फीज़ा मै खुशहाली सी लगती ह,
आप आये ह तो महफिले सजने लगी ह यहाँ ,
ओर फूलो की खुशबू मै, नयी ताजगी सी लगती ह
नही तो रोज गुमसुम से हुआ करते थे ये वीराने,
आब इन वीरानो मे अब नयी जान आयी सी लगती ह !

Tuesday, April 24

नए प्रभात तक ..

ठण्डी हवा के झोकों से बचा कर चरागो को हमने,
रोशन कीया ह तुमरे लिए , अब तलक,
आंधी तूफानों से बचा कर,बारिशो से भी छुपा कर,
रोशन कीया ह प्यार को, इस बरस !
की अब तुम आकर , बरस जाओ बदली बन कर इस अंतर्मन
मे,रोशन हुए चरागो के मध्य तक..
चलते हुए अंधेरो से, पार कर के ख्शितीज को, हम हाथों मे,
हाथ लेकर चलते रहे अगले नए प्रभात तक...

Monday, April 23

क़ैद मै ह बुलबुल-3

जब गम की हो जाती ह अती,
आस पास कोई अपना जो होता नही,
अकेली सी बुलबुल रहे तर्पती ,
जब अपना मानों जिसे वो छोर दे साथ ही,
तो रहता नही कीसी पे भरोसा भी,
जब अपने जन्म दाता भूल जाये देना खुशी,
तो दील से फीर वो आह ह निकल्ती,
की सब बाते असूलो की रह जाती ह धरी की धरी!

Sunday, April 22

क़ैद मै ह बुलबुल

क़ैद मै फर्फराती सी बुलबुल, अब उड़ना चाहे,
साथ कोई दे ना दे, पर अब खुल चुकी ह रहे,
अब पिनजरे टूट गए ह, अब उड़ने ही वाली ह,
उसकी उडान सरे जग मै निराली ह
जो क़ैद मै थी पहले, अब बाहर नीकल के मुस्कुराये
दूर कर दीया ह, उसने डर के साये...
अब कहा भी उससे जाये, ओर जीया भी ह जाये...

क़ैद मै ह बुलबुल सय्यद मुस्कुराये ..

क़ैद मै ह बुलबुल सय्याद मुस्कुराये,
कुछ कहा भी ना जाये, चुप रह भी ना जाये..
वो क़ैद मै ह क्यूकी, पर् ~ काट दिए ह उसके,
वो उड़ के भी कही, जा कहीँ अब ना पाये.
कभी कीस्मत ना रास आये, कभी दर्द मै चील्लाये
क़ैद मै हबुल्बुल सय्याद मुस्कुराये..

जिस दिन था जन्म लीना, वो प्यारी सी बुलबुल थी,
चहकती हुई सी, आंगन मै फीरा करती,
उसे भेजा गया फीर बाहर, कुछ ग्यान ले के आये,
पर हर वक्त रहे मंडराते, डर के काले साये,
वो ग्यान तो पाती थी, पर ग्यान अधूरा था
दूर गगन मै उड़ने का , वीचार भी पूरा था,

बोली वो अपनी माँ से, उड़ना मै दूर चाहूँ ,
माँ उसकी ये बोली, बेटी हर तरफ ह दहशत के साये,
वो गुमसुम सी पड़ी रही, ना उड़ने की सोच पाये.
फिईर बड़ी हुई जो, हर वक्त थे जो पहरे,
हँसने की तहजीब , रोने के सलीके गए सीखाये,
पर अपनी मर्जी से, वो हँस भी ना पाये!

उसने उडान भर ली, दूजे पिन्जरे मै जा कर,
मासी उसकी माँ थी, सोचा था उसने आकर,
मगर माँ तो माँ ही ह, कोई ओर माँ ना बन पाये,
तोह्मते लगा कर जुल्म उसपे ढाये,
जो गुनाह उसने कीए थे ही नही, वो भी उसके सर लगाए!
कुछ कहा भी ना जाये, चुप रह भी ना जाये!

फीर एक दीन था बदला पिन्ज्रा, ब्याही वो गयी जब,
बहुत थी वो रोई, मुझे ना ब्याहो बाबुल ,
अब तो कुछ मौका ह, कुछ करने का, करने दो इस पल,
बाबुल ने फीर ये बोला, हाथ जोड़ बेटी से,
ए मेरी लाडो पयारी, समझो मेरी तक्लीफे,
मै नही सह सकता हू, समाज के कटाक्ष अब
तू जा अपने घर बेटी, कर लेना जो चाहे तू,
वो मान गयी थी उस पल, आंसू जो बाबुल के देखे!

फिर उड़ चली थी दूजे पिंजरे मे ख़ुशी से,
मगर वहाँ भी लाले, अन्न के पडे थे,
ना अन्न का दाना था, ना प्रेम ही वह था,
फीर उसे पड़ा उड़ना, रास्ता नही था,
और साथ कीस्मत बेरन का, फीर से कहीँ नही था..
उसने अपने प्रीये को अपना जब बनाया,
सारी जिन्दगी निकल गयी, इस जदोजहद मै
उसकी दबी ख्विशे, अभी भी वोही ह,

उड़ने मै जो उसने देरी बहुत ही करदी ह,
अब जो साथ थे उसके आगे नीकल गए ह,
मगर अब भी पहरे ह, जिम्मेवारियो की धूप के
उसके पर ही जल गए ह, अब क्या उड़ने का मन बनाए,
क़ैद मै ह बुलबुल,सययाद मुस्कुराये,
कुछ कहा भी ना जाये चुप रह भी ना जाये..

Saturday, April 21

मोहे क्यों जनम दीया मेरी माँ?

मैने बेटी बन जन्म लीया,
मोहे क्यों जन्म दीया मेरी माँ
जब तू ही अधूरी सी थी!
तो क्यों अधूरी सी एक आह को जन्म दीया,
मै कांच की एक मूरत जो पल भर मै टूट जाये,
मै साफ सा एक पन्ना जिस् पर पल मे धूल नजर आये,
क्यों ऐसे जग मै जनम दीया, मोहे क्यों जनम दीया मेरी माँ,
क्यों उंगली उठे मेरी तरफ ही, क्यों लोग ताने मुझे ही दे
मै जित्ना आगे बढ़ना चाहू क्यों लोग मुझे पिछे खीचे!
क्यों ताने मे सुनती हू माँ,मोहे क्यों जन्म दीया मेरी माँ?

इंसानियत

मत्र्भूमी से प्यार कोई बुरी चीज नही,
मगर उससे भी बड़ी इंसानियत ह कही,
क्यों लड़ मर कर ख़ून खराबा करते ह सब
नाम ले कर, वतन का प्यास भुझाते ह वह्शियत की
कोई भी मजहब नही सीखाता, आपस मै बेर रखना फिर भी
नाम धरम का लेकर, लारते ह लोग मतलब के लिया ही
ये तो चांद लोग ह बेठे जो गद्दी पे,
जो लड़ा रहे ह, सारी इंसानियत को ही ,
हम सब एक दुसरे के दील चोट पहुँचाये नही.
ओर जो पहुँचाये इंसानियत को चोट, उसे बकशे नही
काश ऐसा कोई कानून होता, सभी देशो मै अमन होता...

दो चेहरे







मै जब सुबह उठती हू तो जिन्दगी
मेरा तार्रूफ मुझसे कराती ह
की एक शावेता ह हँसती सी
एक शावेता रोती रहती ह,
मेरे दो चेहरे ह, मै जानती हू
एक ग़मगीन सा ह, वो मेरा अंतर्मन ह,
एक हँसती हुई सी लडकी ह, वो मेरा जीवन ह
ये जीवन संगराम ह, मै जानती हू
लड़ने की हिम्मत लेखनी से जुटाती हू
बार बार गिर के उठ जाती हू
फीर से लड़ते हुए, जंग मै जुट जाती हू
जानती हू कोई जंग मैने अभी जीती नही
पर सुबह पास ही ह, इसका मुझे यकीन ह..

दील टूट जाता ह..

हमने जिस् पल, अपनी चाहत उसके नाम की
उसी घड़ी , चुन ली राह बदनामी की
लोग पागल कहते ह तो कहा करे
अब हमको परवाह क्या ह ज़माने की
मगर जब वो हमे दीवाना कहता ह
दील चीर जाती ह ये बात उसकी
लोग तो पागल हमे कहे सो कहे
वो जो कहता ह, तो दील टूट जाता ह..

एक पत्थर

बेजान एक पत्थर, मगर कीतना दर्द देता ह
चोट देता ह, चीख नीकल जति ह
जब लगता ह ये बेजुबान पत्थर
ऐसे जैसे किसी का तीखा व्यंग्य
दील मै चुभ जाता ह,नश्तर बन के
उसी तरह खमोश ये पत्थर लग जाता ह
दील को भेद कर, एक अपने के ताने सा
एक पत्थर

दर्द

दर्द दिल मै हो तो हँसा नही जाता,
कहने की बाते ह सब यारा,
जब दर्द दिल मै हो तो दिल ,
खुद ही बन जाता ह तमाशा..
अब क्या गम जो तमाशायी लोग ह तो
हँस लेने तो इनको हमपे ओर जरा सा..

चीरागो तले

जब चीरागो की रोशनी मद्धम हुई,
उन चीरागो तले तुम्हें दून्डा,
तुमारा साथ ही तो था मेरा पास
उस अँधेरे मै भी हमने,जीसे खोजा
हर सांस मै बसें थे तुम,
नजर आये बस उन अंधेरो मै ही क्यों?
जब रोश्निया थी जगमगाती हुई,
तेरे चेहरे की चमक धुन्दाली थी क्यों?

Thursday, April 19

दिल तो फूल होता ह

दिल तो फूल होता ह जो खिल जाता ह
एक छोटी सी खुशी से
दील तो फूल होता ह, मुरझाता ह,
गम की धूप मे
दील तो फूल होता ह, जो बदलता ह
जब मौसम ह बदलते
दील तो फूल होता ह, जो महकता ह
एक नाम की खुशबु से

Tuesday, April 17

मन

दूर नभ से तारे टूटते ह फीर
गीरते ह धरा पर,
धरा विशाल ह जो समेट,
लेती ह सब
हर हलचल, हर गुनाह अपने मे समेट लेती ह
इसी तरह औरत का मन ह,नीर्मल
जो अपने मै सब द्वेशो को समेट लेता ह,
ओर वीशाल हृदये मे अपने,
हर गम समेट लेता ह
उसका मन ह जो सब भूल जाता ह
अपने प्रीये जनों को पास देख कर...

उठ स्वपन साकार कर अपना.

ए अनमोल सृष्टी के रचयिता,
ए भारत उठ स्वपन साकार कर अपना!
समानता, ममता,समता की का रचना,
उठ भरत स्वपन साकार कर अपना!
वीजयी भव ,आशीर्वाद देते ह देवता,
ले बापू का शस्त्र ओर ग्यान जवाहर का,
प्राणो मै संचारित कर , लहू नव उल्लास का,
ले अब कर दे शांत क्रांती अरम्भ,
नैनों मै ले कर, परिवर्तन का सपना,
ए अनमोलसृष्टी के रचियता ,
ए भारत उठ स्वपन साकार कर अपना!

Monday, April 16

मै कवी हू,

ये एक सवाल का जवाब ह, मुझसे कीसी ने ये सवाल किया था,
की कवी हमेशा गम ही क्यों लीखता ह ...तो ये मेरा जवाब ह....
मै सभी के वीचारो का आदर करती हू.मगर ये मेरा नजरिया ह,सो यहाँ लिख रही हू......
मै कवी हू, दुःख कहता हू, मै कवी हू
अपने रंज लीखता हू, कारण तो जानो इसका
भेद क्या मानो इसका..
मै जब गम लीखू अपने तो मुझे,
मेरे बहुत से अपने, याद आते
मुझे अपने ही गम नही,
मुझे सबके दुःख रुलाते
मै अपनी आंख का आँसू नही रोता,
हर शख्स की आँखों के आंसू,
मेरी आंख को रुलाते ,
मै वहां जाता हू,
जहाँ तुमारी सोच नही पहुंच सकती
मै दुःख भी देता हू,
ओर नग्मो का मरहम भी,
क्या कुरेदेंगी मेरी कवीता
तुमारे गम को
तुमने कभी कीसी ओर का गम
अपना समझा ही नही
मै अपने जैसे , सभी को याद कर्ता हू
अपनी लेखनी से , मै सबके गम बाँट सकता हू..
मै फीक्र को धुआं मै उडाता नही
मै फीक्र रखके मन मै, उससे सीख लेता हू,
जहाँ रवी ना पहुंचे वह कवी पहुँचता ह
ये मैने नहीं कहा , लोगो ने कहा ह ....

दोहरी जिन्दगी...2

मै उसी बचपन को नीत खोजा करती हू,
जिसको छोड़ आयी बाबुल की गलियों मैं,
जीसे भूल आये अपने घर के अम्रुद के पेड पर,
जीसे भूल आयी मैं अपनी सखीयों मे,
मे अपने उस बचपन को अब भी खोजा करती हू,
क्यों जी रही हू मैं ये दोहरी जिन्दगी?

रो भी ना सकेगा..

दील को तोड़ा गम नही, पर खेला उसे समझ खिलौना क्यों,
जख्म दीया हमे गम नही, पर उन पर chhidkte हो नमक क्यों...
क्यूकी ये तो पहले से टूटा सा दील ह, ओर तोड़गे तो मिलेगा क्या
जख्म जब हरे हो जायेंगे, तो दील रो भी ना सकेगा..

अक्स

आजमैअक्स अपना देख के आज मै घबरा गयी,
कहॉ से चली थी कहॉ आ गयी
जब mud के देखती हू तो दील डरता ह
किं पथारो के शहर मॆं मैं क्यों मै आ के घबरा गयी,
हर घड़ी एक डर की कल जाने क्या हो
हर घड़ी एक खौफ, क्या ये बुज्दिलो का शहर ह
जो जोर अपना चलाते ह मज्लूमो पर ,
मै अपनी पहचान खो बेठी,
जग के रंगो मै,मै खुद ही नहा गयी,
ये तो सोचा ना थाकी होगा मगर,
मै चली थी क्या पाने, ओर क्या मै पा गयी ?

ओर वो चेहरा जो आईने मै था ,वो मेरा नही था
वो तो कोई अनजान सा मुखौटा था,
जो मेने पहना था खुद को बदलने के लिए
पर बदलने के लिए खुद को ,
अपना अस्तित्व मैभुला गयी,
कहॉ से चली थी कहॉ गयी?


रह गए

वो दूर हमसे चल दीया,
हम खवाब बुनते रह गए,
वोह मेरी वफ़ा पर हँस दीया,
हम उसे देखते रह गए,
वो राह बदल कर चल दीया,
हम उसी राह मै रुके रह गए,
वक्त तो बहुत निकल गया आगे
हम खडे वहीँ पे रह गए
तुम ह्मे दिलासा देते रह गए,
ओर हम रोते रोते रह गए
तुमने बोला अभी वक्त लगेगा
हम राहे तकते रह गए,
वक्त आया ना अब तक तो
हम घुट घुट के मरते रह गए.

pathara di nagri....punjabi poetry

assi pathara di nagri aa wase,
chehre te chehra la bethe,
asi apna aap bhula bethe
shishe vich chehra hun kise da lagda ha
koi sada is duniya wich nahi a hi hun te lagda ha
hun assi chehra apna wata bethe
assi pathara di nagri aa wase...

तनहाई

तन्हायिऊँ से अब लड़ने की ख्वाइश ह,
खुद से कुछ कर गुजरने की ख्वाइश ह
आप का इंतजार बहुत कर लिया हमने बैठे बैठे
अब आगे बढ कर तुम्हें छूने की ख्वाइश ह
सपनों मै दीदार बहुत कर लिया तुम्हारा
अब सपनो को हक़ीकत मै बदलने की ख्वाइश ह
तन्हायिऊँ से अब लड़ने की ख्वाइश ह,

प्यार ओर दोस्ती

जब प्यार से दोस्ती ने पूछा, क्यों तेरा दर्जा ह उंचा
तो दोस्ती ने हँस के कहा, तूने जख्म दे, मरहम ना पूछा,
मेने मरहम दीया दोस्तो को, तूने बस दुःख देना सीखा
तोड़ा तूने हीर के दील को , कभी रानझे का दील ह टूटा,
दोस्तो ने साथ दीया जब प्यार ,रिश्ता ओर घर बाहर ह छूटा!

दूर दूर रहता ह

भटकते हुए जीन राहों पर तुमसे हम मिले थे,
क्या पता था ओर भी गम जदा होंगे,
तुम्हें पाकर भी पा ना सके, कभी सुख पा ना सके
हमने तो चाहा था तुम बीना किसी ओर को ना देखेंगे
पर मिल ही ना पाये, एक साथ चलते चलते भी
ओर कभी राहों मै हम मिलान का कोई गीत गुनगुना ना सके
हर वक्त एक बोझ दील पर ही रहता ह की जो साथ साथ
चलता ह, वो क्यों इतनी दूर दूर रहता ह?

दर्द ही दर्द

छुपा के दमन मै रख लेते मेरा नाम तो
यऊ ना हम तमाशा ए दुनीया बनते

ज़ख्मो को दर्द दील मै ही छुपा लेते तो
यऊना हम तमाशा ए दुनिया बनते

जान लेते जो तुम फूल नही हमारे चमन का
यऊ बाग़ उजड़ने के गम मे ना रोते

सिस्कीया लेती ना तन्हायी हमारी कोने मै,
ओर तान्हायियो को अपना ना साथी बाना लेते

अश्क अगर तुम अपने छुपा लेते,
तो दुखो के दरिया मै हम पागल ना बहते!

एक औरत

मै घर की रंगीन चारदीवारी मॆं
क़ैद सी एक औरत, या सजा हुआ कोई फानूस
मै अपने घर की रौनक हू
या शायद घर वालो का गुरूर

मै घर को बनने वाली एक कड़ी या
दिवारू पर लगी हुई एक पैंटिंग
अनेको चटकीले रंगो से सजी
ओर हरियाली से खूबसूरत रंगो मै सनी ,

मै क्या हू? मुझसे ना पूछ ए मेरे खुदा,
आज तक खुद को समझ ना पायी,
मै नही हू तो कुछ नही ह,
मै हू तो घर मै रोनक ह!

पर मेरे चेहरे पर क्यों रौनक नही ह
मै क्यों एक मूरत सी कोने मै पडी हुई
मै क्यों एक बुत सी कमरे मै सजी हुई
मै क्यों चुप सी खामोश पड़ी हुई!

जब तुम जान जाओ मै क्या हू,
मुझे भी बता देना, जब मेरे हँसने पर,
तुम कोई पाबन्दी ना लगाओ तो हँसा देना,
ओर जब लगे इस मूरत की जरूरत नही तो बाहर फीकवा देना!

दर्द

दर्द दर्द लोग कहते ह, दर्द क्या ह हम ये कहते ह

ये आग ह दुखो की, ये लाश ह खुशियो की,
ये जिन्दगी का नंगा सच ह, ओर आंसू का जश्न ह
ये जख्मो परनमक ह, ये सूखा हुआ हलक ह
ये रेगिस्तान ह अकेले पन का , ये भीड़ मै अकेलापन ह
ये खुश्यी का ग्रहन ह, ये खूनी लाल रंग ह,
ये ज्वलामुखी की अगन ह, ये नरक की आग ह
पर फीर भी ये ह, ओर उसी की बनायीं दुनिया मै ह

bhol gaye

jin dosto ne hath thama tha mera
wo chale gaye ab door bahut dor
naye dosto ko ddondte hue, or purano ko bhool gaye

jin dosto ko apna mana tha wo
to bas hal pooch chale gaya
naye risto ko jorne ke liapurano ko bhol gaye

sad.gif

punjabi poetry

hun ki kariye je yaran ne sano chad dita
ki kariye je una ne sano kad dita
dil de jis kone wich assi rehnde si
us kone wich hor kise noo rakh lita
kyu aise patharan de nal
asii pyar da wada kar lita

shaveta.... bazmeshayeri/stomping.gif

ek pagal si ladki,

ek pagal si ladki,
jo talashti ha har jagah apno ko
duniya ki bheer me akeli si
tuti si or gumsum si wo ladki

milte ha kehne ko bade apane
par pal bhar hath bada kar
sabhi chor dete ha, use akela
tuti si gumsum si wo ladki

roshni

madham si roshni or chand ke sath
me or wo ho hath me hath
kuch bhi na kahe is kahomoshi me
keh jaye khamoshi har bar har bat

ujre gharondo

ham mohbbat dete ha, jis jis ko wo rooth jata ha
na roothana a yaro , ab dil tut jata ha
ham to har bar gharonde, banaye or ujare ha
ab in ujre gharondo me, aks na najar ata ha
tumara pyar ha jo kasti ,ban kar aya ha
nahi to toofano me to, har koi ghabrata ha

jalta swal hoo me...

me jalta sawal hoo ek, ruka sa khwab hoo ek,
tumne jo ha tora, wo khandar barbad hoo ek

na paar mene ki had koi,na tora dil kisi ka kabhi
tumne tohmate lagayi, me jar jar roiii
meri sans par the pehre,isliye ham the there
mera swapn tumne tora, mera har khawab jala ke chora.
mandir ha ek jalaya, or rakh use banaya
pyar ek kia tha, or sath na mila tha
kya ye bhi ek gunah tha,fir bhi lanchan lagaya
tumne muze rulaya, me khush nai hoo gar to
tum bhi nahi rahoge, tumne jalaya mandir
tum bhi to jal maroge,
na pyar hi mila ha,par hamne sada dia ha
tumaree har bat pe, haan hi kha ha
iisliye tumare sath ho main

me jalta sawal ho ek ruka sa khawab hoo ek
tumne jo ha tora, wo khandar barbad hoo ek

meri prerna... shazia ke lia...

tum meri dost , meri hamdam ban gayi
meri kavita tere ane se khil gayi,
tu rang ha berang jiwan ka mere
tere ane se gam ki shakl hi badal gayi
tumne har shayri or kavita ko pada meri
or jawab me tumne bhi kuch bat likhi
jo sada dil ko cho gayi, tumne har gharii
muze apna kha, itna to muze apno ne bhi na dia
jane kya rista ha ham dono me muze yuu ha lagta
too mere pichle janam ka bichra yar ha jo muze mila
teri khani me kyu muzko apni khani lagti ha shamil
a shaz door ho kar bhi to mere dil me ha shamil
is dil ki mehfil me, tera naam sajaya ha
khuda se bhi upar aa dost tuze pya ha
ye hakikat ha koi khani nahi
teri awaj me jadoo ha, marahm ha koi
jo mere gamo par tune sada lagaya ha
teri awaj sun ke ye chehra khil aya ha...

ek rista

sochte ha ham ye, kab samaj badlega ye
kab ye ek aurat mard ke riste se ubhar ke
dosti ke reiste ko jo ho unme, samjhega
kab log janege ki rista ek hi tarah ka
har ladke ladki me nahi hota
insaniyat bhi koi cheej ha
dosti bhi ek rista ajeej ha.....

ada

ashk ko chupane ki ada, to aise ha
jaise seep me moti ,chupaye bethe ha
abhi khul gayi seep to, niklega moti
aise ankho me asnoo ,chupaye bethe ha

umeed

umeed ha jo jiwan ha, umed ha jiwan paryant ha
umeed ek roshni ha, umeed andhero ka anchal ha
umeed kabhi khushi ha, umeed kabhi gam ka sagar ha
umeed bhanwar ha jise niklna muskil ha,
ye roj jagati ha, swapan din me dikhati ha
ham to isi umeed ke saye me, jite ha ji rahe ha
umeed unke ane ki kash ki khatam ho jaye
or kitna jiwan fir sukhad ho jaye, kash ki umeed dafan ho jaye

PUNJABI KAVITA... HANJOO

mere hanjoo je keh sakde, ki mera hal ki aa
te kyu juban meri no khena penda,
hale dil sada kyu sakhiye, sade dil noo kehna penda,
apna aap gava ki wi ,sano pyar tuhada je mil janda
te dil awen na tarapdA, je yara no dard na dasna penda
assi te das ke wi gava ditta, a rola wi muka ditta
par hanjuan da mol paya na, asii samandar wi baha dita..

dard ke paimane

dard ke paimane kyu chalak jate ha
log jaise kabhi mekhane me unu chale jate ha
larkhrate hue jab wo wha se wapis ate ha
to kuch der ke lia gam ko bhol jate ha

ye mehfil bhi mere lia mekhana ha
jab ham yahan ate ha to sukun thora pate ha
jindagi ki tapti dhoop se , rahat ham pate ha
jalte hua dil ko sukun pahunchate ha

fir bhi beraham dard ke paimane
fir chalak ate ha, muzko satate ha , or rulate ha
muzko bichho se dank lagate ha
mere jakhmo ko kuch oro badate ha..............

kuch choti kavitayen

juban keh khe kar ab to thak gayi
gala rundh gaya ro ro ke
tum hame na samje, ham kehte rahe
to kya fayda ab keh ke...

gam ki barish me doobi rehti ha dosti
tum tnaha jab chor jate ho dost
tum chale jate ho dor hamse bahut
to ro dete ha, apni bebasi pe aa dost.

log aksar bat karte ha, pyar ki
kaise pyar hota ha pata nahi
bas wo pyar jo ranjha ne kia,
kia heer ne bhi, wohi ha pyar bas wohi
par jante nahi ki ye marj ha kaisee?
chen leti ha sukun or chain bhi
pyar to bas ag ka daria ha ji....

jindagi thokro me sambhalti rahi,
har bar dhoop me tapti rahi
har bar chanv se bachti rahi
kantoo ki sej par chalti rahi..
isliye hi...
ban kundan aag se nikalti rahi

kya pta tha

dil jab tere nam likha tha, ye kya pta tha
ki tere dil me koi oor samaya hoga
jab ye jana, a jana hamne, din ek bhi
hamne ansso ke bina na bitayaa hoga

satrangi khwab

tumaree ankho ne jo khwab palko me sajaye hue the
wo hamne dil ke kone me abad kar lia ha
ab dil ye tere khwabo sa rangeen ho gaya ha
satranggi khwab jo tumne isme bhar dia ha..

kyu bana ha?

KYU INTAZAR BANA HA?
PYAR KO PANE KE LIA
KYU JAHAR BANA HA?
AMRIT CHAKHNE KE LIA
KYU KADWA BANA HA?
MITHAS KO JANNE KE LIA
YE SWAL BANA HA
KOI UTTAR JANNE KE LIA...

wo fir aa gaya

har ghari jiske sath rahe, uski sanso ki garmi
uski khushboo door rahi kyu mere man se
aaj wo aya ha fir naya roop leke man me
aaj fir naye sapno ne man me li karwate

jo ham talash rahe the pyar duniya me
wo to tha mere hi paas me, aaj pa lia une
wo jo kabhi sathi nahi tha, aaj sath laga chalne
wo jo sunta nahi tha bat meri, bat laga sunne

wo jo kehta nahi tha dil ki ab laga kehne
jet to gaya mera pyar, par man kya kare
jo chala gaya tha bhatkne,ghar laye kaise
us man ko apne, jo talash raha tha pyar , duniya me

ek ghrihini ki dua...

मैने दुआ एक मांगी उस रब से,
की अगर कही karadakti धूप हो
तो मुज़े दे दे,मगर
मेरे आंगन को सलामत रखे

कोई ना तोरे मेरे phol आंगन के
दर के सहमे साये मै ,
वो ना जिए, आजादी की महक
उनको महसूस हो
ओर वो हमेशा खुश रहे...

ek varnan

KHANDHARON KA EK SHAHAR THA
JISME NA KABHI SAHAR THA
BAS KALI RAAT BHAYANK THI
TUTA HUA HAR MANJAR THA
WO DARI SI SEHMI SI LARKI,
KE SAYE ME JI RAHI THI
BEDILoo KA SHAHAR THA WO,
JIS ME WO SEHMI KHARI THI,
ye warnan mere bharat ka ha, jisme
aurat dari hui sahmi si ha,
use abhiwaykti ki ajadi nahi ha,
wo sahmi ha kyuki,
aas passkitne wahshi ha,
jinki ankhe us par lagi ha
ki ab nikle , wo tab nikle
or nooch kar wo use kha le....




WHSHIYAT.......punjabi poetry

AJ ME SAVERE HI EK NEWS PADI.. ME LIKH NAHI PAWANGI PAR KAVITA WICH KAWANGI KI EK AURAT NE KIWE APNA GHAR KHUD APNE HATHA NAL KHATAM KAR DITA.. KISE DE PYAR WICH, AURAT DA EK ROOP A WI HA , MERA DIL DEHAL GAYA...


UJAR GAYA EK BAAG FIR
DAR DE SAYE KALE HOYE
KINNE KALE KALE NE
NIRMOHI KYU LOK A HOYE
KYU KAT WAD KE LASH NU
BORE DE WICH PA DITA
JINDE NAL BITAYI SE JINDAGI
UNO KEDE FAHE LA DITA
PYAR DA AA KEDA RROP SII
JINE VEHSHI INSAN BANA DITA
BACHE RUL GAYE, GHAR WI RULYA
KYU BACHYA NO RAWA DITA
O CHALI GAYI FIR RAVAN DE NAAL
JADO RAM NO SHAMSHAN PAHUNCHA DITA
A KEDI RAVAN LILA HOI
KIWEN WHSHIYAT NE DERA
INSAN DE DIL VICH PA LITA

jiwan ek sangram

kismat ko wo log ,uu kosa nahi karte
jine bharosa ha khud pe roa nahi karte
mante ha ye kehna asan ha karna bada muskil
magar unu hosle past jiwan me kia nahi karte
hamne bhi khaye ha dhoke bade pyar me,
magar kha kar fir uth khare hue ha sangram me
ye jiwan ek sangram ha bhoola nahi karte
naseebon ko apne kabhi kosa nahi karte
kabhi kosa nahi karte

riste

dil ke riste ajeeb hote ha
ye dil ke bade kareeb hote ha
magar door bhi ho jate ha pal bhar me
itne najuk kyu ye, a ajeej hote ha

ye gharonda

me bhigi hoo tere pyar me to ban gaya fir ye gharonda
jo ujra tha kahi par aaj ban gaya fir ye gharonda
jhankti thi jisme viraniya, jagmga utha pyar se gharonda
ab ye roshan hua ha, ki kash na najar lage kisi jalim ki
kitni mehnat se aurat banati ha , ye gharonda..

wo ek pal

wo ek pal jo ham ankhe unse mila bethe
jane kaisa dil me dard jaga bethe
hridya wedna se bhar utha mera
ham to jite ji khud ko bhula bethe
antarman me ek chees si uth- ti rahi jab tab
ham apne antarman ko kis
uljhan me uljha bethe...ye kaisa rog laga bethe?

teri disrti ke rang me

teri disrti ke rang me
ham doob gaye a sakhi
tum aoo to samjo meri pira sakhi
har sans me prem ha
ang sang tum raho sakhi
me is uljhan me hoo dobi
ki kaise dil ka bhed tume kaho sakhi
tum to hridya ko mere janti ho
kab se hi, magar ab kyu muzko bhol gayi
kis khsan ,kya bhool hamse ho gayi?

mera ateet

ateet ke saye me kab tak?
me aviral tumko niharti..
kab tak bat johti teri?
ab to ye ateet bhi
dhool dhosrit ho utha,
me kya kahoo, kiski kami?
me kya kaho tose sakhi
meri pira ateet ki samrityo se
ab ha bar jati, muskurahat
attet ki vedna ha ban jati...

sapne

ham kahwabo ko khobsurat tab bante ha
jab hamre khwab hakikat ban jate ha
jo sapne ankhoo me saje the kabhi
jab wo hakikat me sach ho jate ha

muze akash de do

a khuda bas ab to muze mera akash de do
me jo hoo, meri is tarap ko ab awaj de do
meri jo ye tees ha, ise tum agaj de do
a khuda muze mera akash de do

me ked ho is ghar ki char diwari me
muze sapno ka aksh de do
me ud kar majil choo lo apni ,
me ghar se bahar jo chawi banana chati
ho us chavi ko purnanak de do

punjabi kavita------hatha wich hathkariya

hatha wich hathkariya pa ke kyu chaht inni wadi ditti a rabba
me jan wi de dendi , is chaht piche, par kuj na milya
me kyu nahi band reh sakdi is ghar wich, ban ek gudia
kyu nahi ji sakdi jo jiwan menu milya, kyu aag sine la diti
jindagi ujar bana diti, meri taraph ne kyu meri jaan
jokham wich pa diti?

wad de hun te menu, dil mera tarpada we
ya de meri manjil , nahi te kol apne bula le
mere pera wich kyu chale pa dite
kyu mere hanjoo suka dette
kyu dil wich jale pa ditte
hun sukun de manjil de menu,
hathkariya meriya khol de, hath kariyan meriay khol de ...
bas hun khol de...
bazmeshayeri/medium-smiley-045.gif

priye ko pati---2

priye ko pati likhi mene
prem pankhuri gulab par
or kalam le dil ki, likhi ek sajili pati

tum jane kyu priye mere
duniya ki uljhan me ulajh gaye
wo din tha jab ek raste pe
ham sath chale the
ab rahen kyu alag ho gayi
tum ko pati sath rehte bhi
muzko kyu likhni pari?

me likhti hoo ek pati prem se bhari
usme likha ha oo mere sajan ji
jag ye badla tum na badle
mosam badla, tum na badle
pardes ja kar yad nahi karte ho ji
tum bhi likh dete, sukoon ham pate
likh dete pati prem bhari....

KASH AISA HOTA...

Insaniyat se bada kuch nahi, na desh na watan, par fir bhi jane kyu log jagiro
or jamin ke tukro ke lia ek doosre ka laho baha dete ha...

matrbhoomi se pyar koi buri cheej nahi,
magar usse bhi badi insaniyat ha kahi,
kyu lad mar kar khon kharaba karte ha sab
nam le kar, watan ka pyas bhujhate ha wahshiyat ki
koi bhi majhab nahi sikhata, apas me ber rakhan phir bhi
naam dharam ka lekar, larte ha log matlab ke lia hi
ye to chand log ha bethe jo gaddi pe,
jo lada rahe ha, INSANIYAT SE BADAduniya me kuch nahi kuch nahi
ham sab ek doosre ke dil ko chot pahunchaye nahi
or jo pahunchaye insaniyat ko chot, use bakshe nahi
kash aisa koi kanoon hota, sabhi desho me aman hota...

ashiyan

ashiyan chalo chand ke par banaye
na koi or ho bas ham tum reh jaye
koi rok na tok ho jamane ki,
bas ek pyar ho, hamare bich me bhi
na uljhne ho, jo door le jaye hame kabhi
na koi or bich me aye kabhi

kyu duniya pyar ke gharonde ujar deti ha
pyar ke badle jaha me nafrte faila deti ha
aao ham ashiyan banaye, swapnlok me hi
jaha kam se kam, ye duniya bich na hogi.

DUA

muhabbat jamane ne kisi ne ,
kya ki hogi jo hamne ki ha,
log to pa lene ki zid karte ha,
hamne to door reh kar ye ibadat ki ha...

ki kash koi dukh ka jhoka choo na paye tume
or rab najre bad se bachaye tume...

man bawra

man bawra samjha kab,or jane samjega kab?
ki dukh din ren rehta ha sang,
sukh ki bela sach me, hoti ha kam,
magar fir bhi din ren, dondta ha kya ab?
tum sang waytit kia the jo khshan
wo kahi antheen smaya me ho gaye ha gum,
wo jo kuch pal, umar bhar rahe na sang
par unke vilin hone ka dukh, hota nahi kam
wo jiwan bhar , chalta ha sang sang.....

tumii ho

aaj ankahi kayi bate keh di mene,
kai bar kehna chaha, par keh na paye tumse,

tumii ho jisko dar badar najar ne donda,
tumi wo ho jise meri chato ne chaha

tum mere nai ho janti hoo me,
tum chand ho kisi or ke angan ka manti ho me,

par kaise samjhaoo apne is pagal dil ko
jisne is gunah ko, hi jiwan man lia ha. ab to

har saans me uth rahi ajab lehar ha
mere jismo jaan me, meri smritiyo me

mere astitve ki chahat me, mere tanmana me
tum ho tum ho tum ho bas tum ho...

mat heran ho

mat heran ho ki ye duniya ka dastoor ha,
apne dil ko pathar banana parta ha,
muskil ha bat ye, magar ye jaror ha

muskurana har haal me parta hame
chahe gam ke pulinde ho bandhe
gamo se bahar nikal kar jina parta ha

pathar dilo ki basti mebhi rehna parta ha
mom bana kar dil ko, in pathro me raha nahi karte
mom ko jalana, to aag si duniya ka dastoor ha.

folad ban kar jo jio, to jine degi duniya
jan lo, thokar kha kar bhi muskurana jaror ha,
inhi pathar ke dilo me ashyia banana bhi jaror ha..

Sunday, April 15

जाम

jaam se napharat naa kiyaa karate ha
tere pyaar ke nashe me jiiyaa karate ha
paagal kahate h log hame
ham dar badar teraa naam pukaaraa karate h
tiis sii uth_tii h siine me,
ab dard jiis diin bhii ho, us diin pii liiyaa karate h...
bazmeshayeri/5.gif

उसका चेहरा

uskaa cheharaa jo chaand ha,
mai chakor sii diivaanii hoo uskii,

khud ko kho dene tak kii jiid h,
mai itanii diivaanii ho usakii,

vo to bekhabar bethaa h ,
muh pher ke mujhase yon,

tadp rahii hoon usakii yaad me,
jaise tadpatii h jal biin machhalii.......

रूह

roohen to yahaan roj hii katl hotii h,
diil roj tootate h, or aahen javaan hotii h,

majaboor kii majaboorii roj siskiyaan letii h,
bastiyaan roj ujratii h or mahal banaate h,

ab to aisaa lagataa h rab but ban gayaa h,
mandiir , masjid banaate h, laashen jaha bichhaatii h.

viiraane se khandahar h, chuppi sii lagatii h,
atrpt sii kuchh roohe, yahaan vahaan bhatakatii h......

जीवन का सत

उसने कहा की दील खो कर तुमने क्या पाया ह,
मेने कहा की जीवन का सत् पाया ह,

उसने कहा की जीवन का कोन्सा सच ह डून्दा,
मेने कहा की तुमको हमने लाखो मे ह खोजा.

उसने मुस्कुरा कर, कहा, लाखो को खो कर क्या पाया ह,
हमने बोला खो कर लाखो को पायी ह ये मुस्कान.

उसने मुस्कुरा कर बोला, इस मुस्कान मे क्या ह,
हमने हौले से बोला, यही तो मेरा छोटा सा जहाँ ह

parchaiin

हवा सर्द होती ह
अहसास जाग उठते ह,
ओर गम साथ चलता ह,
parchaii की तरह,

हम अकेली राहों पर,
चुप चाप से चलते ह,
दील खोने का गम ले,
मुर्दे के तरह,

रात का सन्नाटा ह,
हवा साय चलती ह,
दील को चीर जति ह,
कांटे की तरह.

कोई फैसला कर लो तो बेहतर ह,

कही इंतज़ार करते करते तेरे आने का,
टूट जाये दील ना कही हमारा,
आंसू मे यादो के बहने से पहले,
ख़ून जिगर का बहने से पहले,
कोई फैसला कर लो तो बेहतर ह,

क्यूकी ग़र तुम फैसला ना कर पाये,
ओर हमसे कुछ कह ना पाये,
कही मोन तुमारा जान ले कर ये जाये,
तो इस जान को ग्वाने से पहले,
कोई फैसला कर लो तो बेहतर ह.

तकदीर

रेत पर लिख कर हम नमो को मिटते रहे,
दील पर लिखा नाम मिट्यें क्या?
तुम तो तकदीर बन गए हो हमारी,
तकदीर को खुद से दूर ले जाएँ क्या?

अनजाने रस्तो

अनजाने रस्तो मे खोयी थी मैं
अब लोट आयी हू घर पे,

जब देखा आशियाँ उजर गया,
थक गयी हू राहों पे चलते-चलते,

पांव छील गए ह, काँटों पर,
फूल भी अब अपने नई लगते,

मुज़्हे कोई थामो की रो रही हू मैं,
आंसू भी नई आज मेरे थमते,

जब मुड़ कर देखती हू तो शुन्य ह,
सोचने की ताकत क्यों गुम ह,

अनजान रहो पर अनजान लोग ह मील्ते,
थक गयी हो रहो पे चलते-चलते.

kavita

भाव्नाओ को उकेर कर दील की कलम से,
बहुत कुछ लिखते हैं हम,
मगर एक दर्द ह, एक प्यास ह जो,
बन जति ह कविता, ओर ढल जति ह कागज पर.

भाव्नाओ को जोड़ कर, उने हर मोर पर,
साथ ले कर चलते ह जब हम,
तो उन्ही भाव्नाओ मे उभर अति ह कविता
बन जति ह कविता, ओर ढल जति ह कागज पर

गुमराह

गुमराह थे अभी तक,आज घर लोट आये ह,
नींद मे थे अभी तक, अब जग कर आये ह,
अब सहर हो गयी ह जिन्दगी मे,
दूर अब रातो के साये ह,
अंधे हुए जाते थे जिनके प्यार मे,
मालूम चला की वो तो स्वार्थ के,
एक जीते जागते बुत बने बांये ह,
अनख खुली तो पाया हमने,
खो दी अपनी मासूमियत हमने,
उने पाने की जिद मे खो कर खुद को आये ह,

एक ही रंग

होली के रंगो मे, मुज़े लगा ऐसा ह,
कीत्ने रंग समेटे ह खुद मैं ,होली के मौका ह,

जब गुलाल उड़ता ह खुश चेहरों पर तो लगता ह,
की सभी जो अलग अलग रंगो मैं खोये ह उस ,

हर रंग मे एक ही रंग ह जो दिखता ह,
वो प्यार का रंग ह जो हर होली पे उड़ता ह.

सावन

आज सावन क्यों मुझे , रुलाने लगा,
रिम झिम बूंदो मे कोई याद अने लगा,

जिन्दगी ठहरा हुआ पानी हो गयी,टप टप
की आवाज मैं मोसम गुनगुनाने लगा,

सौनधी मिटटी की खुशबू महकने लगी,
सीहर कर ये मन एक राग गाने लगा,

की काश ये सावन बन जाये एक बहाना,
ओर मील जाओ तुम आज ये दील चाहने लगा.

ख्वाबो का रंग

हमदम के याद करने से,
चेहरे पे हया ए जति ह,

उसकी आँखों को याद कर जो
खुद ही आंखे शर्म जति ह,

ख्वाबो का रंग सुर्ख हो जता ह,
जिन्दगी सतरंगी हो जति ह,

हमे खयालो मे ही रहने दो की,
अब जागने से जान मेरी जति ह.

सिस्कियां

हम तो उनकी दोस्ती मे जान, लुटा बेठे थे,
मालूम ये हुआ वो दोस्ती के काबिल ही ना थे,
हम तो उनके इंतजार मे आंखे लगाए बेठे थे,
मालूम हुआ वो तो दील ए बेहरहम निकले,
दोस्तो दोस्ती मे खाया वो धोखा हमने,
हम तो uऊ गिरे की फीर उठने के काबिल भी ना राहे,
पर जुल्म उनके इस पर भी कम ना हुए,
हम रोते राहे ओर वो मजे उठाते राहे,
हम सिस्कियां लेते राहे, ओर वो सितम द्हते राहे.

मगरूर

आज हमे अहसास हुआ, की जरूरत हम को उनकी ना थी,
उने भी हमारा इंतजार था, बस फर्क इतना था,
हम उने चाहते थे, ओर उने इस चाहत का अहसास था,
पर वो मेरी चाहत को अपना हक समझ बेठे थे,
जायज नाजायज मांगे इसलिये ही रखते रहते थे,
ना हो जाये कई देर सितम dhate dhate
मे कहती हू इसलिये, ए दोस्त इलतीजा ह मेरी:

`डरो उसकी लाठी मे जिसमे आवाज नई,
वो देखता ह अपने सभी बंदो को,
फीर उठाता ह वज्र जब हमे होता अहसास नही,
मे तो अंधी हो कर जो कहोगे किया जाओंगी,
पर मासूम के dil से खेलना, काबिले तारीफ नई.
तुम भी एक दिन ए दोस्त ठोकर कहोगे,
तब रोओगे ओर फीर गिर्गीरोगे, मगर तब,
जब धोखा तुम्हें मिलेगा ओर मिलेगा प्यार नई,
आज वादा ह अपनों से भी दूर जाओगे.'

मगर वो तो मगरूर ह होश खो के बेठे ह,
सितारो की चमक मे अंधेरो को अपनाये बेठे ह,
अभी सितारो की चमक की औंध ह,मन मे,
इसलिये चांद को अपने तुम ए चकोर देख पाते नही.
ये नाता इस जनम का नही जनम जन्म का ह,
अगर ना होता इसका अहसास हमे सितारे दीलाते नही.

उनके बीना

जिन्दगी उसके बीना वीरान हो गयी,
पता ही ना चला कब जिंदगी कुर्बान हो गयी,
हम तो इन्ताज्र कर के बेठे रहे,
रहऊन मे उनकी सुबह से शाम हो गयी.

दोहरी जिन्दगी

दोहरी ह मेरी या जिदगी क्यों लगता ह,
एक बालपन ह मुज्मे जो अब भी रहता ह,
मेरा बचपन अब भी अंग्रायिया लेता ह,
ओर जिमेवारियो की धुप मुज़े जलती ह,
फीर भी मेरा ये मन कहता ह,
जीसे खोजती हू वो यही कहीँ ह,
जीसे दूद्ती हू वो मेरा अंश ह,
क्यों जीने नही देता समाज मुज़े ,
मेरे इस बचपन के साथ,
रहने नई देता कोई मुज़े,
क्यों जलती ह जिम्मेवारियों की धुप मुज़े,
क्यों थकती ह सफ़र की दूरियां मुज़े.
क्यों जी रही हू मे ये दोहरी जिन्दगी

मैं आजाद हू?

आज नारी दिवस ह,सब कहते ह मे आजाद हू,
मगर पूछती हो मैं आपसे की
क्या सच मे ,मैं आजाद हू?
पिटा के घर थी, तो उसके घर की इज़्ज़त,
पति के घर मे उसके घर की रोनक,
घर की चार दिवारी मे महफूज हू,
बाहर निकल गयी तो रोंके बाजार हू.
क्या सच मे मैं आजाद हू?
कभी अर्धांगिनी,कभी ममतामयी ,
मान थी अब तक, मेरी मजबूरी ,
सिसिकियां क्लेती थी जब तब.
पर मांगी हक ओर स्वतंत्रता,
तो कहते हो जड़- ये फसाद हू.
क्या सच मे मैं आजाद हू?
गलती पुरुष करे तो माफ,
जो मे गलती करू तो जड़- ये अपराध हू,
क्या सच मे मैं आजाद हू?
ज़माना बदल गया ह,इसका मे जवाब हू,
कम काजी बन कर लापरवाह का पा चुकी खिताब हू
क्या सच मे मैं आजाद हू?

मानती हू धुप बहार की बर्दाश्त नही ह,
मानती हू मर्द के हाथ मे ताकत ह,
मानती हू उसके घर मे इज्जत ह,
इस बात को नाक्रा ना मेने कभी,
की रौशनी मेरे चलने के लिया ह जरोरि,
पर फीर भी मे चुभता हुआ सवाल हू,
जब सब कर गुजर के थक जति हू,
मांगती मे भी एक पनाह हू,
मे हर पल जब हमसफ़र के साथ हू,
तो मांगती ओर कुछ नई उसका हाथ हू,
जिसके कंधे पे मे भी रो सकती,
कमजोर से ताकतवर हो सकती,
मे उस कंधे की तलाश हू?
मे आँखों मे लिया एक प्रतिकार हू,
मे एक दबा सा अहसास हू,
मे अंतहीन एक तलाश हू,
क्या सच मे आजाद हू?

जाने क्यों

जाने क्यों हर शख्स खरीदार नजर अता ह,
ओर ये संसार एक बाजार नजर अता ह,
dil उजरे ह तो कही तो कही शहर बसें ह,
उज्र दिलो पे नए शहरो का एक बाजार नजर अता ह

हमसे पूछो के हाल हमारा क्या ह,
हमदर्द ना दूर तलक भी ना नजर अता ह,
अपनी दस्ता खुदी को सुनाने बेठे ह,
सुनने वाला ना कोई यार नजर अता ह.

Saturday, April 14

जिन्दगी ,

खिलती हुई धुप ह जिन्दगी ,
कभी अँधेरा ह जिन्दगी.
बसा हुआ घर ह जिंदगी,
कभी ऊजरा मकाम ह जिंदगी.
खुशियो का बसेरा ह जिंदगी,
कभी KHANDAR वीरान ह जिंदगी.

सच मे SAMAJ ना आया..
क्या ह ये जिंदगी?

एक ऐसा देस.

मे चाहती हू इस वीश्व को बनाना,
एक ऐसा देस.
जहा मेरे मित्र सखा ओर दुश्मन पा
जाये समावेश.
सूरज की किरणे सभी पर पडे सम एक
मे चाहती हू इस विश्व को बनाना,
एक ऐसा देस. मे चाहती हू इस विश्व को बनाना,
एक ऐसा देस.
जहा मेरे मित्र सखा ओर दुश्मन पा
जाये समावेश.
सूरज की किरने सभी पर पडे सम एक
मे चाहती हू इस विश्व को बनाना,
एक ऐसा देस.
जिन लोगो ने मुह मोरा ओर चले गए परदेस.
ना वो गलत थे ना मे,
गलत तो थे समय के फेर.
वो जो दो सखा कभी मिल कर रहे थे खेल,
अलग हो गए, समय बड़ा दरवेश,

आओ सब बुराईयां भोल कर आत्मा कर ले एक,
विश्व को बने मे एक, कर ले निवेश,
जहा ना लिंग na bhashayi मतभेद,
आत्मा का ही बस मीलन हो, ऐसी स्वर्गिक दुनिया मे
कर ले हम पर्वेश.
जिन लोगो ने मुह मोरा ओर चले गए परदेस.
ना वो गलत थे ना मे,
गलत तो थे समय के फेर.
वो जो दो सखा कभी मिल कर रहे थे खेल,
अलग हो गए, समय बड़ा दरवेश,

आओ सब बुराईयां bhol कर आत्मा कर ले एक,
वीश्व को बने मे एक, कर ले नीवेश,
जहा ना लिंग नाभाशायी मतभेद,
आत्मा का ही बस मिलान हो, ऐसी स्वर्गिक दुनिया मे
कर ले हम पर्वेश.

उम्र भर

खुशनुमा चांद खुशनुमा रात,
चांदनी मे नहाया तुमार साथ,
ओर चांद की चांदनी मे एक कशिश,
जाने आज मोसम मे कुछ खास ह,
तेरी यादो को संजोना ह मुज़े,
क्यूकी इनी यादो एक साज़ ओर तेरी आवाज ह,
इन yadoo को अब तो उम्र भर जी लेंगे,
क्यूकी हो सकता ह साथ तुमार हो पल भर का,
मगर यादो का साथ तो उम्र भर का साथ ह.

क्या जरूरत ह?

ख्वाब को हक़ीकत मे बदलना मुश्किल ह
पर सारी उम्र ख्वाब के लिया तरसने की क्या जरूरत ह?
जब इन्सान चाहे तो चांद को पा सकता ह
फीर दूर रह कर दीदार करने की क्या जरूरत ह...?

खुशनुमा चांद

खुशनुमा चांद खुशनुमा रात,
चांदनी मे नहाया तुमार साथ,
ओर चांद की चांदनी मे एक कशीश,
जाने आज मोसम मे कुछ खास ह,
तेरी यादो को संजोना ह मुजे,
क्यूकी इनी यादो एक साज़ ओर तेरी आवाज ह,
इन yadoo को अब तो उम्र भर जी लेंगे,
क्यूकी हो सकता ह साथ तुमार हो पल भर का,
मगर यादो का साथ तो उम्र भर का साथ ह.

तुम्ही ए दोस्त

आज सफ़र असान सा लगने लगा की तुम,
दोस्त बन कर जो जीवन मे आये हो,
वो भी थे जीने अपना हमसफ़र मन था,
वो तो चोर गए एक मोड पर अकेला,
आज उस मोड पर हाथ बढाने तुम आये हो,
कितनी दुशवारिया थी राहों मे,
आज उन आँखों के अन्स्सू तुम ही पूछने आये हो,
जीनके लिया हमने सारा जीवन दे दीया ,
वो तो जा किनारे पर बेठे ह,
मगर तूफानों मे हाथ बड़ा कर तुम ही,
मेरी भवर मे नाव चलाने आये हो,
बन माझी मेरी नय्या के,
मुज्से प्यार जताने आये हो.
तुम्ही ए दोस्त मेरा साथ निबाहाने आये हो.

दर्द

दर्द के समंदर मे हम गोते लगते रहे,
वो याद आ आ कर हमे सताते रहे,
कब्र तक भी याद उनकी साथ गयी जालीम,
हम रोते रहे ओर वो रुलाते रहे.

हक

पास हम उसके आ नही पाते,
जीसे प्यार करते ह, अगर पा ले तो,
फीर उस पर हक अपना समजते ह,
ओर जायज नाजायज मांगे करते ह,
इसलिये हम उसे खो देते ह,
ओर कभी प्यार देना ह पाना नही ,
ये सम्ज नै पाते, पास उसके जा नई पाते.

रंजीश

ये रंजीश ना होती, ये दुःख ना होता,
अगर जिवानकी तनहाई मे अब तक,
किसी ने साथ दीया होता, किसी ने मुज़े सुना होता,
किसी ने मेरी च्र्दिवारी मे बंद khwaisho को ,
पनपने दीया होता, मुज़े भी जीने का हक होता,
मैं मैं ही रहती ,मेरा कोई वजूद होता,
फीर ये .............

रंजीश ना होती, ये दुःख ना होता.

मीठा दर्द

यादों को जाने क्यों संजोया ह,
क्या पाया ओर क्या खोया ह,
कभी देखती हू दूर तलक,
बस यादो को ही मेने पिरोया ह.
कुछ ओर कभी था ही नही,
याद ही तेरी ओर कोई साथ था ही नै,
अंधेरो मे भी जीने संजोया ह,
वो तेरी यादो का मीठा दर्द ह जो,
मेरे अकेले पन के साथ सोया ह.

जनम जनम

कल जब मेरा मौत से होगा मीलन,
हँस कर गले लगऊंगी या होगा रूदन,
उस sakhtkar की कीमत क्या होगी ,कितने kshan
रहेगा वो मीलन, सब asthir सा होगा विचितरसा,
कैसा होगा वो khasnik मिलान, विसम्रित सा कर जाऊंगी ये सब
जब होगा मेरा पुनर्जनम, ये अहसास राहे गा जनम जनम

सलोना बसंत,

शुन्य मे खोया ह मेरा सलोना बसंत,
मेरी खुशीया, मेरे सपने, समेटे सो रह निश्चिनत,
दून्ड रही हू की ना जाने कहॉ,
छीप गया मेरा सलोना बसंत

जानते ह कोण वो निद्रलीं बसंत,
वोह मेरे जीवन का सुखचैन,
जो आया ना कभी?सुने ह जिस बिन दिन-रेन.

या शायद आया था पर शानीक था उसका आगमन,
अस्हस भी ना कर पायी थी की, हो गया उडंत,
इंतजार ह की इक दिन जरूर आयेगा बसंत.

क्यों जीवन सूना ह मेरा,
क्यों सीतारे ह मुज्से खफा,
पर शायद सब इसी तरह सोचते ह,
सब खोजते ह अपने अपने बसंत।

क्या सचमुच खो गया हवो,
या बहलाते ह हम्खुद को,
हजारों तीखे प्रशनो से बचाते ह खुद को,
जबकि क़ैद कर लिया ह हमने अपने अपने बसंत.

स्वीकारते नही पर सत्य ह यही,
क़ैद करके, सुख अपना खोजते हसभी ,
सोचो ना अगर लालसा होती,ना त्रिशाना होती, सब प जाने की,
ना bhokh बढती तो कैसे खोता ये बसंत.

हमारी अदम्य लालसा ने chinaha इसे हमसे,
वो यही ह हर पल पर अदरिशाये अविचल,
ना doondte फिरते उसे हम सब,
अगर होता हमारी इच्हाओ का कोई अंत.

प्रेम रंग

मेरे धवल आंचल पर प्रेम रंग तुमारा,
रंग रंगीला हो ये श्वेतांचल प्यार तुमार,
अक जवालित ज्योति बाना कर रख दीया तुमने,
मेरा अस्तित्व सारा.

कभी कभी अचानक उही हँसते हँसते,
जब यादो मे मुखुर हो उठता ह चेहरा तुमार,
तो धुन्दली आँखों मे अविरल बहने लगती ह ,
मेरी अश्रु धारा.

टूट कर बिखरते ह मोती अनेको,
रोम रोम पीडा से भर जता ह सारा,
मान कर भी मान पते नही की कर गए ,
हमसे तुम किनारा.

जिस प्रेम कथा के अंकुर को तुम,
अपने जूठ से सींच गए थे,
अब उनको अमर पवितर बनाएगी ये ,
मेरी अश्रु धारा.

मों रह कर मेरे तड़पते दील को,
ना पीडा दो सनम,एक बार तो
दर्श दीखा दो बस एक बार,
कह दू वो प्रेम सत्य था या चलावा,

दीपक जला कर अँधेरी रात मे भी,
इंतजार करते रहेंगे तुमारा,
इस बीच अगर तुम आ जाओ मेरे प्रीये,
ज्योतिर्पूंज ये हो जाएगा सारा तुमारा.

चमकता चांद

चमकता चांद दाग समेटे ह अपने जहाँ मे,
कोई ये भी देखे,
मुस्कुराता फूल ह कितने कांटे समते ,
कोई ये भी परखे,
उसी तरह ये जीवन अन्बुझ पहेली,
सुलझा कर तो देखे.
ओर उलझते जायेंगे, सुलाज ना पाएंगे,
ये अनजान रास्ते.

दर्द का अहसास तो ह.

दर्द का हल्का अहसास तो ह,
तू दूर सही dil के पास तो ह,
सेकरो ने रोंदा ह इस dil को,
चलो तुज़े इस दर्द का अहसास तो ह.
मे क्या जानू, के तुमने कदमो मे
कीत्नो को रोंदा ह, पर muze याद रखा
उन हजारो मे कही ये आस तो ह.

खा खा के ठोकर, हो गए ह घायल,
अब नमक ना chirkoge जख्मो पे ,
ये अहसास तो ह,ना सही तुज़े मोह्बत हमसे,
पर मेरे dil की तड़प का अहसास तो ह.
ना सही उम्को हमसे मोहब्त ये मना,
चलो सेक्रो ह दोस्त तुमरे ये जाना
पर उनमे हम भी कुछ खास तो ह.

ये कैसे नोबत ?

ये कैसे नोबत आयी,
मुरझाने को कलि आयी,
झर गए व्रिख्शों के पत्ते,
काल ने जब हांक लगायी,
जहा बसता था प्रेम सदा,
आशियाना उजर गया,
बचा ह एक khandar ही बस,
प्रेम की एके क ईंट हिल गयी.
टूट गया वो प्रेम् आज,
जो था भाई भाई मे कभी,
चीत्कार कर उठा परभात,
कैसे अँधेरी निशा ये आयी,
मील बर्बदियो ने जश्न मनाया,
हर पर्ती जगह खोन ह बहाया,
प्यार की जगह,चरूँ तरफ,
दुश्मनी ही दुश्मनी छायी.
बम्बू का अम्बर लगा,
सारा जहा ख़ून से लथपथ,
लाशो की सेज ह सजायी कीस्ने,
लाशो की सेज ह सजायी.
कल का देखो नग्न नाच,
कर गया विनाश आज, देख दशा
नव भारत की शवेता तेरी आंखे भर आयी.

मेरे प्रीय

मेरे प्रीये तुम जो पास नही हो,
मन फिर भी अकुलाता ह,
तुम दूर रस्तो पे नीकल गए हों,
ये मन घबराता ह,
मे दीवा स्वप्न मे डूब गयी हों,
जो मन हर्षता ह.

क्या तुम मेरे इस नम्र निवदन को,
अप्नोगे प्रियतम,
हाथो मे हाथ लिया मेरा तुम,
सहलाओगे सनम

तुमरे मेरी आत्मा ने अड्खेलियो,
मे कितनी बार एक दोजे को पाया ह,
मीठे मीठे सपनो मे खुशियो को,
किया anubav हर जनम.
क्या तुम मेरे इस नम्र निवेदन को,
सुन पाओगे प्रीय्तम.
मेरी गोद मे सर रख कर असीमित,
सुख पहोंचोगे तुम.

हमने कीत्नी बार रेत पर नमो को,
लीखा ओर मीत्या ह, कितनी बार इस anubahv को,
सपनो मे दोहराया ह.
अब मेरी एक अकन्षा को पूर्ण कर पाओगे ,
कम से कम,
की हम एक हो जाये पल भर को,
जैसे भ्रमर कलियों के रहता ह संग


पर्नातू जानती हु मे ये, ये सब बस एक स्वप्न,
क्यूकी तुम हो एक कायर प्रीयातम,
Muze बन्धन मुक्त कराने को
ना ऊगे तुम,
मे बंधी सामजिक बन्धन मे ,
स्वपन ह मगर उन्मुक्त स्वचंद.

मेरे APNE

janam janam sath jeene ki kasme thi,
kasme bhi thi or rasme bhi thi,
magar wo to sath is janam bhi,
de paye na jane kyu hamara hi,
har wakt jab chaha unka sath,
khare the door muskurte hue hi,
zoozte rahe ham akele toofano se,
or kinarro pe tamasha wo mere,
........................
MERE APNE the jo dekhte rahe

ये GHARONDA

me bhigi hoo tere pyar me to ban gaya fir ye gharonda
jo ujra tha kahi par aaj ban gaya fir ye gharonda
jhankti thi jisme viraniya, jagmga utha pyar se gharonda
ab ye roshan hua ha, ki kash na najar lage kisi jalim ki
kitni mehnat se aurat banati ha , ye gharonda..

ASHIYAN

ashiyan jo mene banya tha wo kanch ka tha,
gharonda jo mene banaya tha wo ret ka tha,
hamne to unke sath rehne ke lia us pyare,
se ghar ko roshiniyo se sajaya tha,
magar kya kre une jo andhero se pyar tha,
isliye unone dushmani ko gale lagaya tha,
hamre ret ke gharondo ko dhool me ,
haste hue, kahkhe laga kar milya tha,
par une kaho ki khuda se kuf kare,
jalate ha jo ghar doosro ka kabhi,
gharonde unke khoobsorat bante nahi,
fir na kehna dost ke nate batya nahi tha.

Friday, April 13

आपका shukriya

बन गए मेरे हमराही,
आप का शुक्रिया,
तकलिफे हो गयी ह आधी,
आपका शुक्रिया,
अब गम की चिन्ता नही सताती,
आप का शुक्रिया,
मेरे जख्मो को सहलाया,
आप का शुक्रिया.
मुज़े fir जीने के काबिल बनया,
आप का शुक्रिया.

हम तो नही जानते

हम तो नै जानते की क्या सही ह क्या गलत,
क्यूकी ग़र सूरज की रौशनी सुख देती ह,
सर्दियों की शीत सुबह को , तो वो सप्र्श मधुर ह.
ओर अगर भीषण गरमी मे चिल्चिलाती धुप ह तो ये ज्वर ह.
धूप तो धूप ह कभी सुखद कभी दुखद .

जब ठंडी हवा चलती ह मन्द मन्द,
एक गर्मियों की सुबह को, बूंदे गीरती ह,
बारिश की एक तपती दोपहर को, तो ये अनुभव सुखद ह,
ओर अगर सरदी की सुबह हवा चल जाये शीत लहर ह.
हवा तो हवा ह मस्त ह, जीवन दे या मरण.

मूजे पता ह, की अती हर चीज की बुरी होती ह,
क्यूकी कोई बी अभिवाय्क्ती अपनी सीमा पर कर जाये,
तो ये असीमित पीरा ह, बुरा ह, घाव ह, दुःख ह,
ओर अगर खुद को रोक ना पाये तो प्यार भी गुनाह ह,
धूप हो, हवा हो,सभी गुनाह ह,अगर पर हो जाये हद.

जाने kyu

जाने क्यु उसका इंतजार था हमे,
की आंखे बिछाये बेठे थे उनकी राह मे,
फूल हाथो मे थे ओर आँखों मे चमक,
मगरनजरे पथरा गयी इन्तजार करते करते

बेजान हो गया जो शरीर था सांसे
खतम हो गयी मगर , आंखे रस्ते पर लगी
रही इंतजार मे, अब कब तक ये आंखे आंसू बह्ये ,
हम लाश बन गए इंतजार कर के, की वो अब आये की तब आये

khamoshi

जब आंसू भी ना आये,
ओर कोई खामोश हो जाये,
मत सोचो की गम उसे नई ह,
जब गम हद से गुजर जाये,
तो अपने आप आ जाती ह...
होंठो पर , आंखो मे,ओर लबो पर
ये खामोशी......

जब दिल कुछ सोच ना पाये,
सिसकियो की आवाज भी ना आये,
ओर आंखे नम ना हो पाये,
जब गम बर्दाश्त ना हो पाये,
तो अपने आप आ जाती ह...
होंठो पर , आंखो मे,ओर लबों पर
ये खामोशी......

intajar

अगर मीले ना प्यार तो इंतजार एक सजा, ओर हो जाये दीदार तो आता ह मजा.
इंतजार एक सजा, इंतजार एक मजा.
इंतजार एक तड़प, इंतजार दर्द मीठा सा,

अगर पल पल कटना हो मुसकिल तो तड़प ओर हो एक सेलअब आंसू का,
इंतजार एक जज्बा प्यार जताने का,
अगर लम्बा हो इंतजार तो मौत की सजा, इस सजा का इनाम आँखों की दुर्दशा,

इंतजार एक पूजा ,इंतजार एक गुनाह,
अगर प्यार हो सचा तो पूजा, ओर अगर प्यार हो गुनाह तो ये भी ह गुनाह,

अगर इन्तजार अपने प्रिया का तो ह एक वफ़ा,
इंतजार हो पर पुरूष का तो बहुत घिणोना.

कभी इंतजार दोस्त ,कभी ह सखा ,
कभी इंतजार दुश्मन अगर हो लम्बा,
यादे मधुर हो तो इंतजार मीठा, फल ना मिले तो अनुभव कड़वा;

इंतजार तो इंतजार ह यादून का सैलाब ह,
तड़प ह तीखा ह, दर्द ह यही सिखा ह,
बहुत दीन से हम भी इंतजार मे ह लगता ह की उनके प्यार मे ह,

मगर मीरा को जो ना मिल पये कानाह ,
तो इंतजार ह किस काम का, पर कोण सम्जह्ये पागल दील को
इंतजार ह अंतहीन ये खतम नै होने वाला, ओर रहेगा आँखों से,

अविरल बहता , आंसू बन कर कतरा कतरा , खूने जीगर मे रहता,
ये अब जीवन का हीस्सा ह जो मृत्यु तक रहेगा, मीरा रहेगी तड़पती ,
ओर कानाह नही मिलेगा, फीर भी एक आस ह इंतजार ह क्यूकी यही तो प्यार ह.

maa

माँ दूसरा रओप ह खुदा का जमीं पर,
माँ देती ह बचो को सब,
अपने मुह का निवाला चिन कर,
खुद सोती ह कांटों पर,
बचे की राह मे फूल बीखेर कर.
माँ होना कीतना मुश्किल ह अब ये जाना ह मैने,
माँ को बहुत सत्य अब सम्जा ह मैने,
की कैसे कैसे वो हर काम कीया करती थी,
ओर खुद गीले बिस्तेर मे सो कर,
हमको सूखे मे सुलाया करती थी.
कैसे हमारे नाज उठाया करती थी,
वो माँ है जो अब भी मेरे साथ ह,
साथ हर वक्त उसका अहसास ह,

उदास

आज क्यों मेरा मन उदास ह,
लगता ह साया भी नही पास ह,
बहुत रोया ह ये दिल उनकी याद मे,
वो जो हक़ीकत मे कभी थे नही,
जो सपनो मे हमारे पास ह,
पर कब तक सपनो से खुद को बहलायेंगे,
दर्द के समंदर को अपना जीवन बनायेंगे.
अब क्यों लगता ह ये दर्द मौत तक साथ ह,
क्यों दीखता नै सूरज अँधेरा पास ह.
बहुत खोजा की हमदम कोई होता,
दील के अफ्सनो को सुनाने का दील आज ह,
ये दर्द, ना खोने वाला अहसास ह,
इसलिये आज मेरा मन उदास ह.
क्यूकी कोई हमदम ना मेरे पास ह.
जख्म इतने इस दील ने खाए ह,
ए दोस्त तू भी हस ले, एक ज़ख्म ओर सही,
तेरी हँसी मउज़ पर कयामत क्या द्हयेगी,
मेरे दर्द का तमाशा ओर सही,
बस इतना रहम कर देना दोस्त,
मौत आये तो आंसू बहा देना,
मत ये कहना चलो जले पे नमक ओर सही.

dar lagta ha

सच ह की रात से दर लगता ह,
सच ह बरसात से दर लगता ह,
क्यूकी जब ये राते बरसाते,
बीताते थे तुमरे साथ मे,
अब उन लम्हों की याद से भी,
डर लगता हां, अब हर आहट,
हर अहसास से डर लगता ह.

suno ab tumse kehte ha

suno ham ab ye kehte ha
ab ham tumko na likhenge
agar khwabo me aye to
ab ham sab bol hi denge
thak gaye ha ham likh likh ke
tume parna nahi ha to
baar baar kyu ham ye likhe
ki ab bhi pyar ha tumse
hame ikrar ha tumse
magar ijhar jo tum ab na karoge
ab ham bol hi denge
ab ham or na likhenge...

sparsh tumara

saprash tumara har wakt mehsoos hota ha kyu?
tumi mere pas ho, aisa lagta ha kyu?
magar me tumare si sparsh ka spandan, mehsoos karti hoo,
makhmali hath ka tere , is tan par abhas hota ha
hame jab yad ati ha, dil chup chap rota ha
ek vedna si uthti ha, man jab udas hota ha
tere gudgudate shabdo ka jadoo, muze sammmohit karta ha
kyu smhohan me tere me bandhi rehti hoo har pal uno
kya kahoo door reh kar bhi, tumse prem karti hoo kyu?

me juda sii hoo

me juda si hoo
me alg si hoo , juda si hoo tumsi nahi hoo
par dil ki pak hoo, jo dil me ha wohi juban par
ankho me bhi wohi ha, jo mere dil me ha
kuch juda si hoo me tumse

me khud se joth nahi kehti , na apne hamdam se
isliye me alag si hoo, juda si hoo
me apni galtiyo ko manti hoo, man kar use sudharti ho
isliye tumse mejuda si hoo

mere khayl ha ek se, aurat mard ke bare me
me manti hoo galti dono ha kar sakte
me koi bhi bhed inme nahi janti hoo
kuch juda si hoo me tumse

magar had par karna, galt ha dono ke lia
ye bhi janti hoo, kuch hade banayi ha
samaaj ne une pehchanti hoo,

kuch juda si ho me tumse
me apni khushi ko bhi man deti hoo
doosro ko bhi hargij pyar deti hoo, me pyar bant_ti hoo
isliye mejuda si hooo

meri khwisho ke khandhar

meri khwaisho ke khandhar.
.. ab sapne ban kar meri beti ki ankho me dikhne lage ha
meri khwisho ke khandhar
ab aansoo ban kar, uski ankho se behne lage ha
mera hi aks ha wo me jantii ho
isliye dar ke kaale saye mandrane lage ha
meri adhoori sari khwishe, uski ankho me sapna ban gayi ha
mere dil me kahi dabi thi wo ab us ki ankho me saj gayi ha
meri khwishe jo mari thi, wo ab fir se ji uthi ha
dar is bat ka nahi, ki khwishe wo buri ha
par bat ye ha ki bei ban janam jahan mene lia
ye bhi usi mitti me ji rahi ha, jaise mere khawab rahe adhoore
bhagy me uske bhi kami yahi ha,
aaj ik bat yad ati ha muze fir se jane kyu
agle janam mohe bitiya na kijo..
jab me sulgai rahi, ban chingari jiwan bhar
mene us adhoori khwish ko janam dia yaha kyu?
डिलीट

म्र्स
अपर ११(३ डे

maut ke saye me jindagi ko dekha

hamne dekha charo taraf sunsan dekha
ahat na thi koi, bas viraan dekha
us viran kabristan me, ek bacha rota dekha
lasho ke shahar me, jiwan ka ankur dekha
pass usko bachati ek ma dekhi,
vehshiyat ka hamne wo manjar dekha
bache ko bachane, vehshoyon se
ayi kabristan me us maa ko dekha
mot jaha thi chayi hui,
wha hamne jiwan ka ek nishan dekha
a khuda teri khudayi dekhi,
mot ke saye me, bache ko
doodh pilati us maa ko dekha...

maa(ghar me rehne wali us maa ke lia)

मेरे घर की चार दिवारी ह,
ओर मॆं हू एक अकेली,
chhat ह जो कई सालो से वही ह,
उसमे से आब कुछ अक्रित्यां से झाँकें लगी ह
ओर दीवारे ह की उनका रंग उड़ गया ह मेरी तरह,
मै मोन सी हू, चुप चाप देखती हू,
दूर रस्तो से मेरे घर के लोग मुझे हाथ हीला कर,
अलविदा कह रहे ह, ओर अपने अपने कामो को जा रहे ह,
मै अकेली thunth सी खडी हू, आँखों मै खालीपन सा lia
सोचती हू, की शाम होगी सब लौटेंगे,
ओर मॆं खाना परोसूंगी ,
जब मेरे बच्चे रोटी कहेंगी तो भाग कर दूँगी !
मै वही खडी हू घर की चार दिवारी मै,
ओर वो तो जाने सारा जहाँ घूम कर लोट आये,
पर आना तो उनको घर ही ह,
थक कर छांव घर मै मीलती ह,
सब पंछी उड़ कर सुबह नीकल जाते ह,
ओर लोट कर घरोंदो मै आते ह,
तब माँ की सीने मै ठंडक पड़ती ह,
घर की चार दीवारी मै माँ ही ह जो रहती ह!

mere jiwan ke das baras

mene apne jiwan ke kitne swarnim varsh
tume samjne me laga dia

or baat itni si thi ki hame tume pyar jatana na aya
tumne jiwan ke kitne pal
uhi hi gawa dia

baat itni si thi ki tumko pyar karta ho me
ye kehna na aya

ham pas hi the, ahsaas bhi the dono me
magar ankahi bahut si bate thi jine
tum sun na sake...

titliyan

main bat bataongi ek aisi,
jo ha sachi mere jiwan ki,
jis tarah ye tiliyan rang apne
bikherti ha jagah jagah jagah
us tarah phoolo se khilkhilati ha ladkiyan
kaha tha ye mere kisi apne ajeej ne,
wo thi meri ma jaise ma
us wakt na main samaj payi thi us bat ko
ab dekhti hoo jab niklte college se bahar
jhoomti ithlati titliyan
or gharo me chehkti gungunati titliyan
or dekhti hoo haste khelte apni choti bitiyan
to yad ati ha wo titliyan
sach me kai rang ha inme bikhre,
jiwan se ye milati ha titliyan,
hame has kar kaise jina ha
sikhati ha titliyan...
by shaveta mrs narula

प्रिय को पाती

प्रिय  को पाती
प्रीये को पाती लिखूं केसे?
स्याही प्रेम की लाऊँ कैसे?
उनकी आशाओं  मॆं  स्वप्न
मोहक सजे ह जैसे
आन मिलोगे प्रियतम तुम भी
धड़क रहें हैं , हम दिल जैसे

मेरे मन मन्दिर के कोने
भरे हुए ह लहू से कैसे,
पर नही मिलती स्याही फ़िर भी,
प्रीये को पाती लिखूं कैसे?
इस पाती  मै लिखूंगी मैं ?
आओ  प्रियतम मेरे रहते
मै तो सूख रही हूँ, जड़ हूँ
नम्र निवदन करती कैसे
आँखों से काजल ह  बहता
पर फ़िर भी स्याही  लाऊँ कैसे?

प्रीये को पति लिखूं कैसे?

मै चाहती हूँ ऐसी स्याही
जिसमे दरस मेरा दिखे ऐसे,
की मै थक गई हूँ सजन
तेरी लम्बी राहें  तकते
ऐसी प्रेम मगन सी हूँ पर
फ़िर भी पवित्र वो स्याही लू कैसे?
दर्द विरह  का करे बयां जो
ऐसे स्याही लू कैसे
प्रिय
 को पति लिखूं  कैसे?