मेरे प्रीये तुम जो पास नही हो,
मन फिर भी अकुलाता ह,
तुम दूर रस्तो पे नीकल गए हों,
ये मन घबराता ह,
मे दीवा स्वप्न मे डूब गयी हों,
जो मन हर्षता ह.
क्या तुम मेरे इस नम्र निवदन को,
अप्नोगे प्रियतम,
हाथो मे हाथ लिया मेरा तुम,
सहलाओगे सनम
तुमरे मेरी आत्मा ने अड्खेलियो,
मे कितनी बार एक दोजे को पाया ह,
मीठे मीठे सपनो मे खुशियो को,
किया anubav हर जनम.
क्या तुम मेरे इस नम्र निवेदन को,
सुन पाओगे प्रीय्तम.
मेरी गोद मे सर रख कर असीमित,
सुख पहोंचोगे तुम.
हमने कीत्नी बार रेत पर नमो को,
लीखा ओर मीत्या ह, कितनी बार इस anubahv को,
सपनो मे दोहराया ह.
अब मेरी एक अकन्षा को पूर्ण कर पाओगे ,
कम से कम,
की हम एक हो जाये पल भर को,
जैसे भ्रमर कलियों के रहता ह संग
पर्नातू जानती हु मे ये, ये सब बस एक स्वप्न,
क्यूकी तुम हो एक कायर प्रीयातम,
Muze बन्धन मुक्त कराने को
ना ऊगे तुम,
मे बंधी सामजिक बन्धन मे ,
स्वपन ह मगर उन्मुक्त स्वचंद.
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