Tuesday, December 20

मैं एक आग हु परिवर्तन की, एक दिन मेरे विचार तुमको जला  ले जायेंगे

Thursday, December 15

आस बाकि है

अपनी तो मौज है यारो
जब हस्ते है तो खुश रहते है
जब ग़म   मिलते है तो कविता बन  जाती हा
क्या करें आंसू धरे रहते है आँखों मैं,
वरना तो अभी और भी सहने का दम बाकी है
ले लो किस्मत और इम्तेहान
क्युकी टाटा बिरला सरीखे बन ने की आस बाकि है

Wednesday, December 14

गुलाब की पंखुड़ी

किसी गुलाब की पंखुड़ी से न  पूछो
की उसने क्यों काँटों को पाल रखा है 
वो आंसू भर कहेगी ये मेरी किस्मत है
ख़ुशी नहीं
 औंस की बूंदों को  कुछ और न समझना यारो
ये उसी पंखुड़ी के आंसू है और कुछ नहीं

प्यार हर उम्र मैं, हर दौर मैं बस प्यार होता है


प्यार हर उम्र मैं, हर दौर मैं बस प्यार होता है
इसका कोई और नाम मुझे  सूझता ही नहीं
कितना लिखा , कितने शब्द जोड़े निस दिन
मगर प्यार को नाम न कोई दे पाई
हर बार वो आकर्षण प्यार था मुझे यकीं है
क्युकी मेरे दिन रैन इसके अधीन है

मुझे रब से भी पहले जब उसकी याद आई
तो कैसे कह दू की प्यार अब तक न मैं कर पाई
इसलिए हर बार का आकर्षण प्यार होता है
बस कुछ उलझने उसका नाम नफरत बना देती है



मैं फिर से हार गयी , हार गयी

सुबह ने दर्द भरा एक पयाम दिया ,
कुछ टूट गया ह कहीं पर ऐसा काम हुआ ,
वो दूर हो गए हमसे जब हम उनके करीब हुए
खुदाया ये तूने कैसा काम किया?
 मैं क्यों नहीं रख पाई उसे उम्र भर के लिए,
उम्र न रहे अब तो कोई है न गिला
जिस के लिए साँसों को उम्मीद से जोड़ रखा था 
उन्हें अब खीच रही है किसी की मासूमियत वहां 
मैं जानती हूँ कोई उनका इसमें कसूर नहीं
न जानते बूझते उनोने ऐसा काम किया
मगर तन्हाई उनके जाते ही,उलझन बन गयी
मेरी साँसों की डोर से दुश्मनी है क्या पिया?
ना अब तुमरे रास्तो मैं आएंगे
हम तो वो लो है की जलते जायेंगे
मगर खुद को ही जला बैठेंगे इस उलझन में
आंसू अब मेरे तुमको न रोक पाएंगे,
ये लो किसी गैर की मासूमियत जीत गयी
मैं फिर से हार गयी , हार गयी