Saturday, September 25

kuch cheeje hame apne maa baap se virasat main milti hain,
kuch ham virasat main chod jate ha
ye sach ha bache apne maa baap ke aks ko hi darshate hain

Wednesday, September 1

कोन ह ऐसा पारखी ?

आईने मॆं कभी चेहरा देखा करती हूँ तब
लगता ह जाने क्यों जब तब
मेरे चेहरे पर वक्त ठहर सा गया ह
वही जाना पहचाना सा चेहरा ह
वही  हँसी ह, वही  उमंगें
वही आज भी कुछ कर गुजरने का जोश

मगर एक अजनबी सा `मॆं`
 मुझमे आ गया ह,
मॆं चीजो को परखने लगी हूँ,
 उनको देखने का नजरिया बादल सा गया ह
पहले जिन चेहरों मॆं मॆं  केवल खूबियाँ दून्डा थी करती
 अब  उन चेहरों की महीन रेखाओं मॆं भी?
 नजर आ जाती ह कोई त्रुटी,
और मॆं कहने से खुद को रोक नहीं पाती
बार बार मेरी जिव्हा मेरा अनुभव ह बताती
पर एक कसक सी कसमसाती ह अभी भी
कि मेरे इस अनुभव को कोई पहचानता क्यों नहीं?
कोन   ह ऐसा पारखी जो, समझेगा कभी मुझको  भी!