Thursday, October 21

मंजिले और हँसी हो जाती हैं

जब  भी आसमान को छूने लगती हूँ मॆं,
मंजिले और दूर कहीं नजर आती हैं,
जब भी सोचती हूँ कि बस अब,
यही तक ह जाना,
रास्ते की पेमयिशें और फिर और ,
बढती ही चली जाती ह,
इस कदर शिदत से मंजिल कि चाह करना,
शायद यही मेरा कसूर ह,
मंजिल को पाने के लिए,
जी जान लगाना, शायद यही मेरा कसूर ह,
वो लोग भी हैं ज़माने मॆं जिनके,
कदम मंजिले खुद छू जाती ह,
वो कुछ करें न करें मगर उनके लिए
राहें  खुद ही खुल जाती ह
पर मॆं जानती हूँ
जितनी शिद्दत से किसी चीज को चाहो
उसे पाने का नशा उतना ही हसीं होता ह
इसलिए दूर हुई मंजिले और हँसी हो जाती हैं

Saturday, October 16

काश के सत्य के पथ पर चल पाते हम

काश के सत्य के पथ पर चल पाते हम,
काश जो दिल मे ह कह पाते हम,
काश कि सब सत्य होता
कुछ छलावा  न होता,
विष्णु कि मोहिनी मॆं जग
 भरमाया न होता,
न हम  दुनिया मे आने के उपरान्त ,
उस प्रभु को भूल जाते ,
जिसने जन्म दिया उस,
 परमपिता को याद रख पाते,
इस दुनिया के गोरखधंदे मॆं
न फंस जाते हम
झूठ कि शरण मे न खुदको छुपाते ह
गर्व से  खुद से अंखिया मिला पाते हम
काश के सत्य के पथ पर चल पाते हम

Tuesday, October 12

एक बार फिर

मॆं अपनी हँसी कि आवाज मॆं अपने ग़मों को
जज्ब कर लेना चाहती हूँ
मॆं दुनिया के शोरो गुल मॆं खुद को
ख़त्म कर लेना चाहती हूँ
 मेरी हँसी मॆं मधुर खनक नहीं ह
मेरी आवाज मॆं मिठास नहीं ह
बस एक कर्कश सी हँसी
 मेरे वजूद का हिस्सा बन गयी ह
मॆं उस हसीं को फिर से मधुर बनाने कि
असफल कोशिश करना चाहती हूँ
मेरे अपनों ने मेरा अपना होने का
बहुत दावा किया ह हर वक्त
उन अपनों से एक बार फिर
साथ देने की भीख मांगना चाहती हूँ
मॆं फीर से एक बार जीने कि असफल कोशिश
करना चाहती हूँ,
मेरा साथ दे दो , मॆं अकेली   घुट घुट के
मरना नहीं चाहती हूँ

Wednesday, October 6

टूटे सपने

एक   तो टूटे सपने हमको तोड़ जाते ह,
एक तो टूटे रिश्ते हमें रुलाते ह,
और एक दुनिया के ताने,
जहर बुझे  तीर कि तरह लग जाते ह,
एक तो धोखा कहते ह लोग
और एक धोखा खाने वाले को ही
लोग हमेशा सुनाते ह
और धोखा देने वाले साफ़ बच  जाते ह
कैसा ह दस्तूर ए दुनिया ?
पल पल रोने वाले , बदनाम हो जाते ह
और रुलाने वाले , हँसते चले जाते ह
काँटों सीजिन्दगी जिनी कितनी मुश्किल ह
ये दर्द तो वोही जानते ह जीसे
 ये जिन्दगी जिनी पड़ती ह
वो भी उन शर्तो पर जो लोग हमें बतलाते ह