Friday, August 1

चुप न रहो

बस अब कुछ और न चाहू
रहना तुम संग चाहू
और न कोई संगी साथी
न चाहिए कोई अब दीपक बाती
मेरी इचएं सब सम्पुर्ण हुई
तुमसे मिल मै पूर्ण हुई
मै जानू न तुमको कहना
पर जाने क्यों मुश्किल हा चुप रहना
मै रह नही पति अब तुम बिन प्रिय
सोच न पाऊ कुछ भी मै प्रीये
अब तुम ही कुछ तो जतन करो
तुम चुप चाप मत रहो