Thursday, October 25

हम सब भारतीय है

हम सब भारतीय है जो मंदिर न जाने वालो को नास्तिक बताते हैं,
और खुद मंदिर मैं जा कर पड़ोसन और पडोसी की चुगली लगते है ,
हम सब भारतीय हैं,जो भगवा पहन कर सनयासिनो से इश्क लड़ाते है ,
और डिस्को जाने वालो हमारे युवको को पथभ्रष्ट बताते है !
हम सब भारतीय है ,जो पत्नी के घूमने पर पाबंदी लगते है,
मगर उसके  के तीन दिन के  तीर्थ  के झूठ पर जल्दी स्वीकृति लगते है ,
हम सब भारतीय है, जो अपने बच्चो के पास होने के लिए नक़ल लगवाते है ,
और फेल हो जाये तो पडोसी से भी छुपाते है ,
हम सब झूठ के इतने आदि हो चुके है,
की सच से सदा घबराते है,
राम नाम मैं नहीं कर्म में निवास करता है,
ये बात हमें गंदे कर्मो में लिप्त लोग ही उपदेश बना के सुनाते है!

ए दिन तूने क्यों आंखे मीच ली मुझे देख

मैं कई बार सोचती हूँ की मजबूरियां इंसान को मजबूर कर देती है , की उसे दिन की बजाय रात अनोखी लगती है,शैतान आज भी भगवन से ज्यादा ताकत वर है, क्युकी वो लोगो को वो सुख सुविधा देता है जो भगवान नहीं दे सकता , अगर ये सृष्टि प्रभु ने बनायीं है तो उसने सुख सुविधा का मोह भी इंसान में पैदा किया है! वो जीता है रात की रंगीनियों मैं मगर उसके अन्दर का  अहसास उसे बार बार याद दिलाता है और कचोटता ह की दिन तुझसे   आंख नहीं मिलाता , इसलिए हर आदमी दिन से ये ही सवाल करता है :

ए दिन तूने क्यों आंखे मीच ली मुझे  देख कर,
रात खुशनुमा थी तो तुझे  क्यों दुःख है?
तू बड़े दावे करता है दूसरो को रौशनी देने के,
जब रात तुझसे हसीं  है तो  जलता क्यों  है ?
जब मेरे घर मैं भूख थी और गरीबी थी ,
तू क्यों तूने मेरे फटे वस्त्रो को उजागर किया ?
जब रात ने ढक दिए मेरे दाग तो ,
अब मैं बन गया उसका पुजारी तो क्या ग़म है ?
तू  बस नाम से है रोशन  है , तेरी रौशनी आँखों में चुभती है,
रात को देख कितनी खूबसूरत जगमगाहट है ,
जब हजारो  सितारे  और चाँद शीतलता बिखेरे  है
तो  मुझे क्या दुःख है ?
 बस तू तो एक झूठा अहसास है ,
वरना तेरा सूरज दिन भर जलता है,
तू जा दिन मुझे  अब तेरी जरूरत  नहीं,
 मेरी रात रंगीन है, मुझे   ये सुख है !

अपने खुदा को खुदा कैसे कह दू?

अपने खुदा को खुदा कैसे कह दू?
क्युकी वो खुदा खुद को दिखलाता नहीं है ,
मैं तपती रेत पे चल रही हूँ,
क्यों वो मुझे कोई मरुद्यान दर्शाता नहीं है, हो सकता है की मंजिल दूर हो मगर ,
फिर भी कहीं एक हवा का झोंका भी तो  चलाता नहीं है ,
क्या फिर उसकी खुदाई को समझूं?
लोग कहते है की वो अन्दर मेरे कहीं बसा   है !
वो मेरे अक्स में भी तो नजर आता नहीं है !
कभी कभी दर्द हद से गुजर जाता है तो,
मेरे जख्मो को भी तो वो खुदा सहलाता नहीं है !!
किताबों में भी पढ़ी है ,
की वो आस पास रहता कहीं है ,
अगर वो आस पास है तो सांसो में समाता क्यों नहीं है ?
वो तो एक पहेली सा है ,
अजब उसका मेरा रिश्ता है ,
मैं मानती नहीं पर लोग कहते है ,
की उनको मेरी बातो में कहीं उस का नूर ,
नजर आता कहीं है !
मैं खुद को खुदा नहीं कहती मगर,
शायद वो मेरा मैं ही है तभी तो,
दूसरो को दिखता है मुझमे ,
और  मुझे तो बस दूसरो में ही नजर आता वोही है !!

दिन पर दिn

दिन  पर  दिन  बढता  है  पेड़  की तरह ,
 फल दे न दे, तू पौधा है ,जिसे मैं खून से सींच रही हूँ,
मैं हर दिन रात तेरे बढ़ने की दुआ मांगती हूँ,
और अपनी साँसे दे कर तुझे मैं,खींच रही हूँ,
की आज नहीं तो कल कभी फल देगा,
न सही मैं, जो भी इसे खायेगा 
एक पल तो आँख भर के मुझे याद करेगा ,
कहते है क़ुरबानी रंग लाती है ,
मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा
जब भारत की हर महिला ,सशक्त बनेगी 
मेरा स्वप्न उस दिन साकार बनेगा !!