अपने खुदा को खुदा कैसे कह दू?
क्युकी वो खुदा खुद को दिखलाता नहीं है ,
मैं तपती रेत पे चल रही हूँ,
क्यों वो मुझे कोई मरुद्यान दर्शाता नहीं है, हो सकता है की मंजिल दूर हो मगर ,
फिर भी कहीं एक हवा का झोंका भी तो चलाता नहीं है ,
क्या फिर उसकी खुदाई को समझूं?
लोग कहते है की वो अन्दर मेरे कहीं बसा है !
वो मेरे अक्स में भी तो नजर आता नहीं है !
कभी कभी दर्द हद से गुजर जाता है तो,
मेरे जख्मो को भी तो वो खुदा सहलाता नहीं है !!
क्युकी वो खुदा खुद को दिखलाता नहीं है ,
मैं तपती रेत पे चल रही हूँ,
क्यों वो मुझे कोई मरुद्यान दर्शाता नहीं है, हो सकता है की मंजिल दूर हो मगर ,
फिर भी कहीं एक हवा का झोंका भी तो चलाता नहीं है ,
क्या फिर उसकी खुदाई को समझूं?
लोग कहते है की वो अन्दर मेरे कहीं बसा है !
वो मेरे अक्स में भी तो नजर आता नहीं है !
कभी कभी दर्द हद से गुजर जाता है तो,
मेरे जख्मो को भी तो वो खुदा सहलाता नहीं है !!
किताबों में भी पढ़ी है ,
की वो आस पास रहता कहीं है ,
अगर वो आस पास है तो सांसो में समाता क्यों नहीं है ?
वो तो एक पहेली सा है ,
अजब उसका मेरा रिश्ता है ,
मैं मानती नहीं पर लोग कहते है ,
की उनको मेरी बातो में कहीं उस का नूर ,
नजर आता कहीं है !
मैं खुद को खुदा नहीं कहती मगर,
शायद वो मेरा मैं ही है तभी तो,
दूसरो को दिखता है मुझमे ,
और मुझे तो बस दूसरो में ही नजर आता वोही है !!
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