दिन पर दिन बढता है पेड़ की तरह ,
फल दे न दे, तू पौधा है ,जिसे मैं खून से सींच रही हूँ,
फल दे न दे, तू पौधा है ,जिसे मैं खून से सींच रही हूँ,
मैं हर दिन रात तेरे बढ़ने की दुआ मांगती हूँ,
और अपनी साँसे दे कर तुझे मैं,खींच रही हूँ,
की आज नहीं तो कल कभी फल देगा,
न सही मैं, जो भी इसे खायेगा
एक पल तो आँख भर के मुझे याद करेगा ,
कहते है क़ुरबानी रंग लाती है ,
मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा
जब भारत की हर महिला ,सशक्त बनेगी
मेरा स्वप्न उस दिन साकार बनेगा !!
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