Sunday, June 12

मु ट्ठी भर अस्तित्व

ऐ आकाश तुम विस्तृत हो,
अथाह और अनंत हो,
मैंने स्वेच्छा से तुम्हे,शिदत्त से चाहा हैं !
और मैं जानती हूँ की
,तुमने भी मुझे ,शिदत्त से चाहा हैं 
मगर एक अद्भुत सत्य मेने समझा हैं   जो,
अगर इजाजत हो , तो मुझे   कहने दो,
तुम चाहे अनंत हो!
मगर तुम्हारा मु ट्ठी  भर अस्तित्व भी,
तुमसा ही हैं , इसलिए अगर मैं  चाहूं  तो,
क्यों न उस  मु ट्ठी  भर आकाश में ही,
संतुष्ट रह जाऊं ,और अगर चाहूं   तो 
पूरे के पूरे तुम भी कम हो ,
मेरे अंतर  की भूख मिटाने  को!