Saturday, April 14

ये कैसे नोबत ?

ये कैसे नोबत आयी,
मुरझाने को कलि आयी,
झर गए व्रिख्शों के पत्ते,
काल ने जब हांक लगायी,
जहा बसता था प्रेम सदा,
आशियाना उजर गया,
बचा ह एक khandar ही बस,
प्रेम की एके क ईंट हिल गयी.
टूट गया वो प्रेम् आज,
जो था भाई भाई मे कभी,
चीत्कार कर उठा परभात,
कैसे अँधेरी निशा ये आयी,
मील बर्बदियो ने जश्न मनाया,
हर पर्ती जगह खोन ह बहाया,
प्यार की जगह,चरूँ तरफ,
दुश्मनी ही दुश्मनी छायी.
बम्बू का अम्बर लगा,
सारा जहा ख़ून से लथपथ,
लाशो की सेज ह सजायी कीस्ने,
लाशो की सेज ह सजायी.
कल का देखो नग्न नाच,
कर गया विनाश आज, देख दशा
नव भारत की शवेता तेरी आंखे भर आयी.

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