Sunday, April 15

kavita

भाव्नाओ को उकेर कर दील की कलम से,
बहुत कुछ लिखते हैं हम,
मगर एक दर्द ह, एक प्यास ह जो,
बन जति ह कविता, ओर ढल जति ह कागज पर.

भाव्नाओ को जोड़ कर, उने हर मोर पर,
साथ ले कर चलते ह जब हम,
तो उन्ही भाव्नाओ मे उभर अति ह कविता
बन जति ह कविता, ओर ढल जति ह कागज पर

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