अनजाने रस्तो मे खोयी थी मैं
अब लोट आयी हू घर पे,
जब देखा आशियाँ उजर गया,
थक गयी हू राहों पे चलते-चलते,
पांव छील गए ह, काँटों पर,
फूल भी अब अपने नई लगते,
मुज़्हे कोई थामो की रो रही हू मैं,
आंसू भी नई आज मेरे थमते,
जब मुड़ कर देखती हू तो शुन्य ह,
सोचने की ताकत क्यों गुम ह,
अनजान रहो पर अनजान लोग ह मील्ते,
थक गयी हो रहो पे चलते-चलते.
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