ये एक सवाल का जवाब ह, मुझसे कीसी ने ये सवाल किया था,
की कवी हमेशा गम ही क्यों लीखता ह ...तो ये मेरा जवाब ह....
मै सभी के वीचारो का आदर करती हू.मगर ये मेरा नजरिया ह,सो यहाँ लिख रही हू......
मै कवी हू, दुःख कहता हू, मै कवी हू
अपने रंज लीखता हू, कारण तो जानो इसका
भेद क्या ह मानो इसका..
मै जब गम लीखू अपने तो मुझे,
मेरे बहुत से अपने, याद आते ह
मुझे अपने ही गम नही,
मुझे सबके दुःख रुलाते ह
मै अपनी आंख का आँसू नही रोता,
हर शख्स की आँखों के आंसू,
मेरी आंख को रुलाते ह,
मै वहां जाता हू,
जहाँ तुमारी सोच नही पहुंच सकती
मै दुःख भी देता हू,
ओर नग्मो का मरहम भी,
क्या कुरेदेंगी मेरी कवीता
तुमारे गम को
तुमने कभी कीसी ओर का गम
अपना समझा ही नही
मै अपने जैसे , सभी को याद कर्ता हू
अपनी लेखनी से , मै सबके गम बाँट सकता हू..
मै फीक्र को धुआं मै उडाता नही
मै फीक्र रखके मन मै, उससे सीख लेता हू,
जहाँ रवी ना पहुंचे वह कवी पहुँचता ह
ये मैने नहीं कहा , लोगो ने कहा ह ....
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