Monday, April 16

दोहरी जिन्दगी...2

मै उसी बचपन को नीत खोजा करती हू,
जिसको छोड़ आयी बाबुल की गलियों मैं,
जीसे भूल आये अपने घर के अम्रुद के पेड पर,
जीसे भूल आयी मैं अपनी सखीयों मे,
मे अपने उस बचपन को अब भी खोजा करती हू,
क्यों जी रही हू मैं ये दोहरी जिन्दगी?

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