कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Monday, April 16
रो भी ना सकेगा..
दील को तोड़ा गम नही, पर खेला उसे समझ खिलौना क्यों, जख्म दीया हमे गम नही, पर उन पर chhidkte हो नमक क्यों... क्यूकी ये तो पहले से टूटा सा दील ह, ओर तोड़गे तो मिलेगा क्या जख्म जब हरे हो जायेंगे, तो दील रो भी ना सकेगा..
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