आजमैअक्स अपना देख के आज मै घबरा गयी,
कहॉ से चली थी कहॉ आ गयी
जब mud के देखती हू तो दील डरता ह
किं पथारो के शहर मॆं मैं क्यों मै आ के घबरा गयी,
हर घड़ी एक डर की कल जाने क्या हो
हर घड़ी एक खौफ, क्या ये बुज्दिलो का शहर ह
जो जोर अपना चलाते ह मज्लूमो पर ,
मै अपनी पहचान खो बेठी,
जग के रंगो मै,मै खुद ही नहा गयी,
ये तो सोचा ना थाकी होगा मगर,
मै चली थी क्या पाने, ओर क्या मै पा गयी ?
ओर वो चेहरा जो आईने मै था ,वो मेरा नही था
वो तो कोई अनजान सा मुखौटा था,
जो मेने पहना था खुद को बदलने के लिए
पर बदलने के लिए खुद को ,
अपना अस्तित्व मैभुला गयी,
कहॉ से चली थी कहॉ आ गयी?
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