हम तो उनकी दोस्ती मे जान, लुटा बेठे थे,
मालूम ये हुआ वो दोस्ती के काबिल ही ना थे,
हम तो उनके इंतजार मे आंखे लगाए बेठे थे,
मालूम हुआ वो तो दील ए बेहरहम निकले,
दोस्तो दोस्ती मे खाया वो धोखा हमने,
हम तो uऊ गिरे की फीर उठने के काबिल भी ना राहे,
पर जुल्म उनके इस पर भी कम ना हुए,
हम रोते राहे ओर वो मजे उठाते राहे,
हम सिस्कियां लेते राहे, ओर वो सितम द्हते राहे.
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