Sunday, April 15

मगरूर

आज हमे अहसास हुआ, की जरूरत हम को उनकी ना थी,
उने भी हमारा इंतजार था, बस फर्क इतना था,
हम उने चाहते थे, ओर उने इस चाहत का अहसास था,
पर वो मेरी चाहत को अपना हक समझ बेठे थे,
जायज नाजायज मांगे इसलिये ही रखते रहते थे,
ना हो जाये कई देर सितम dhate dhate
मे कहती हू इसलिये, ए दोस्त इलतीजा ह मेरी:

`डरो उसकी लाठी मे जिसमे आवाज नई,
वो देखता ह अपने सभी बंदो को,
फीर उठाता ह वज्र जब हमे होता अहसास नही,
मे तो अंधी हो कर जो कहोगे किया जाओंगी,
पर मासूम के dil से खेलना, काबिले तारीफ नई.
तुम भी एक दिन ए दोस्त ठोकर कहोगे,
तब रोओगे ओर फीर गिर्गीरोगे, मगर तब,
जब धोखा तुम्हें मिलेगा ओर मिलेगा प्यार नई,
आज वादा ह अपनों से भी दूर जाओगे.'

मगर वो तो मगरूर ह होश खो के बेठे ह,
सितारो की चमक मे अंधेरो को अपनाये बेठे ह,
अभी सितारो की चमक की औंध ह,मन मे,
इसलिये चांद को अपने तुम ए चकोर देख पाते नही.
ये नाता इस जनम का नही जनम जन्म का ह,
अगर ना होता इसका अहसास हमे सितारे दीलाते नही.

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