कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Sunday, April 15
उनके बीना
जिन्दगी उसके बीना वीरान हो गयी, पता ही ना चला कब जिंदगी कुर्बान हो गयी, हम तो इन्ताज्र कर के बेठे रहे, रहऊन मे उनकी सुबह से शाम हो गयी.
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