Tuesday, April 17

मन

दूर नभ से तारे टूटते ह फीर
गीरते ह धरा पर,
धरा विशाल ह जो समेट,
लेती ह सब
हर हलचल, हर गुनाह अपने मे समेट लेती ह
इसी तरह औरत का मन ह,नीर्मल
जो अपने मै सब द्वेशो को समेट लेता ह,
ओर वीशाल हृदये मे अपने,
हर गम समेट लेता ह
उसका मन ह जो सब भूल जाता ह
अपने प्रीये जनों को पास देख कर...

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