कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Sunday, April 15
parchaiin
हवा सर्द होती ह अहसास जाग उठते ह, ओर गम साथ चलता ह, parchaii की तरह,
हम अकेली राहों पर, चुप चाप से चलते ह, दील खोने का गम ले, मुर्दे के तरह,
रात का सन्नाटा ह, हवा साय चलती ह, दील को चीर जति ह, कांटे की तरह.
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