कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Saturday, April 14
हक
पास हम उसके आ नही पाते, जीसे प्यार करते ह, अगर पा ले तो, फीर उस पर हक अपना समजते ह, ओर जायज नाजायज मांगे करते ह, इसलिये हम उसे खो देते ह, ओर कभी प्यार देना ह पाना नही , ये सम्ज नै पाते, पास उसके जा नई पाते.
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