कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Saturday, April 14
दर्द
दर्द के समंदर मे हम गोते लगते रहे, वो याद आ आ कर हमे सताते रहे, कब्र तक भी याद उनकी साथ गयी जालीम, हम रोते रहे ओर वो रुलाते रहे.
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