Monday, April 16

एक औरत

मै घर की रंगीन चारदीवारी मॆं
क़ैद सी एक औरत, या सजा हुआ कोई फानूस
मै अपने घर की रौनक हू
या शायद घर वालो का गुरूर

मै घर को बनने वाली एक कड़ी या
दिवारू पर लगी हुई एक पैंटिंग
अनेको चटकीले रंगो से सजी
ओर हरियाली से खूबसूरत रंगो मै सनी ,

मै क्या हू? मुझसे ना पूछ ए मेरे खुदा,
आज तक खुद को समझ ना पायी,
मै नही हू तो कुछ नही ह,
मै हू तो घर मै रोनक ह!

पर मेरे चेहरे पर क्यों रौनक नही ह
मै क्यों एक मूरत सी कोने मै पडी हुई
मै क्यों एक बुत सी कमरे मै सजी हुई
मै क्यों चुप सी खामोश पड़ी हुई!

जब तुम जान जाओ मै क्या हू,
मुझे भी बता देना, जब मेरे हँसने पर,
तुम कोई पाबन्दी ना लगाओ तो हँसा देना,
ओर जब लगे इस मूरत की जरूरत नही तो बाहर फीकवा देना!

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