Saturday, April 21

एक पत्थर

बेजान एक पत्थर, मगर कीतना दर्द देता ह
चोट देता ह, चीख नीकल जति ह
जब लगता ह ये बेजुबान पत्थर
ऐसे जैसे किसी का तीखा व्यंग्य
दील मै चुभ जाता ह,नश्तर बन के
उसी तरह खमोश ये पत्थर लग जाता ह
दील को भेद कर, एक अपने के ताने सा
एक पत्थर

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