कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Saturday, April 21
दील टूट जाता ह..
हमने जिस् पल, अपनी चाहत उसके नाम की उसी घड़ी , चुन ली राह बदनामी की लोग पागल कहते ह तो कहा करे अब हमको परवाह क्या ह ज़माने की मगर जब वो हमे दीवाना कहता ह दील चीर जाती ह ये बात उसकी लोग तो पागल हमे कहे सो कहे वो जो कहता ह, तो दील टूट जाता ह..
No comments:
Post a Comment