मै जब सुबह उठती हू तो जिन्दगी मेरा तार्रूफ मुझसे कराती ह की एक शावेता ह हँसती सी एक शावेता रोती रहती ह, मेरे दो चेहरे ह, मै जानती हू एक ग़मगीन सा ह, वो मेरा अंतर्मन ह, एक हँसती हुई सी लडकी ह, वो मेरा जीवन ह ये जीवन संगराम ह, मै जानती हू लड़ने की हिम्मत लेखनी से जुटाती हू बार बार गिर के उठ जाती हू फीर से लड़ते हुए, जंग मै जुट जाती हू जानती हू कोई जंग मैने अभी जीती नही पर सुबह पास ही ह, इसका मुझे यकीन ह.. |
कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Saturday, April 21
दो चेहरे
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