Saturday, April 21

दो चेहरे







मै जब सुबह उठती हू तो जिन्दगी
मेरा तार्रूफ मुझसे कराती ह
की एक शावेता ह हँसती सी
एक शावेता रोती रहती ह,
मेरे दो चेहरे ह, मै जानती हू
एक ग़मगीन सा ह, वो मेरा अंतर्मन ह,
एक हँसती हुई सी लडकी ह, वो मेरा जीवन ह
ये जीवन संगराम ह, मै जानती हू
लड़ने की हिम्मत लेखनी से जुटाती हू
बार बार गिर के उठ जाती हू
फीर से लड़ते हुए, जंग मै जुट जाती हू
जानती हू कोई जंग मैने अभी जीती नही
पर सुबह पास ही ह, इसका मुझे यकीन ह..

No comments: