प्रिय को पाती
प्रीये को पाती लिखूं केसे?
स्याही प्रेम की लाऊँ कैसे?
उनकी आशाओं मॆं स्वप्न
मोहक सजे ह जैसे
आन मिलोगे प्रियतम तुम भी
धड़क रहें हैं , हम दिल जैसे
मेरे मन मन्दिर के कोने
भरे हुए ह लहू से कैसे,
पर नही मिलती स्याही फ़िर भी,
प्रीये को पाती लिखूं कैसे?
इस पाती मै लिखूंगी मैं ?
आओ प्रियतम मेरे रहते
मै तो सूख रही हूँ, जड़ हूँ
नम्र निवदन करती कैसे
आँखों से काजल ह बहता
पर फ़िर भी स्याही लाऊँ कैसे?
प्रीये को पति लिखूं कैसे?
मै चाहती हूँ ऐसी स्याही
जिसमे दरस मेरा दिखे ऐसे,
की मै थक गई हूँ सजन
तेरी लम्बी राहें तकते
ऐसी प्रेम मगन सी हूँ पर
फ़िर भी पवित्र वो स्याही लू कैसे?
दर्द विरह का करे बयां जो
ऐसे स्याही लू कैसे
प्रिय
को पति लिखूं कैसे?
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