कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Friday, April 13
dar lagta ha
सच ह की रात से दर लगता ह, सच ह बरसात से दर लगता ह, क्यूकी जब ये राते बरसाते, बीताते थे तुमरे साथ मे, अब उन लम्हों की याद से भी, डर लगता हां, अब हर आहट, हर अहसास से डर लगता ह.
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