कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Wednesday, July 28
Sunday, July 18
जुगनूं हाथ मॆं आते ही बुझ क्यूँ जाते ह?
जुगनूं हाथ मॆं आते ही बुझ क्यूँ जाते ह?
हर इन्सान को आजादी प्यारी ह प्यारे,
ये कर देती ह सब के वारे न्यारे!
आजादी हर फिजा को खुशनुमा बना देती ह
और पतंगों को भी चमकना सिखा देती ह,
इसलिए जुगनू हाथ मॆं आते ही बुझ जाते ह,
अपने कैद होने का गम मानते हैं ,
परिंदों को सोने के पिंजरे भी क्यों न सुहाते हैं ?
क्यों सब पा के भी वो उदास हो जाते ह?
क्यों गगन के ललाट पर वो मुस्कुराते हैं?
इसका भी जवाब आजादी ह प्यारे,
खुला गगन परिंदों को भी ,हर वक्त पुकारे!
आजादी जितनी खुशनुमा ह उतनी बड़ी जिम्मेवारी भी
ये समझे अगर तो बन सकती बिगड़ी बातें सभी,
परिंदे अगर स्वतंत्र गगन मॆं सुहाते ह,
तो बहेलियों के जाल मॆं भी कभी फंस जाते ह
और अपने हाथों अपनी आजादी गवांते हैं!
परन्तु एक की आजादी ,दूसरे का कर्त्व्ये ह,
इसलिए हमें इसे और खूबसूरत बनाना ह,
आजाद भारत को एक निर्भर देश बनाना ह,
असुरक्क्षित माहोल जो बना हुआ ह,
उसे अपने सुकर्मों से सुरक्क्षित बनाना ह!
क्यूकी हाथ मॆं आयें तो जुगनू बुझ जाते ह
और अपने कैद होने का गम मनाते हैं!
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