आज कि दुनिया मे भी चाहे औरत का ओहदा बढ गया हो , उसने अपनी महन्त और लगन से चाहे जो भी मंजिल हासिल की हो मगर आज भी उसकी उन्चयियो को उसके चरित्र से जोड़ कर देखा जाता ह, वो उन्चयियो तक पहुँचने के ललक भी नहीं छोड़ सकती और न ही अपने अन्दर कि घुटन को बयां कर सकती ह:
अश्क बहते रहे और शब्द कडवे होते रहे
लोग बदल जाने को मुझे बार बार कहते रहे
मॆं रोज घुटती रही और कभी खुद को बदलती रही
इतना बदल गयी कि हँसना भी भूल गयी
एक तो पहले ही हंसने के बहाने कम थे जिन्दगी मॆं'
जो मिला एक भी बहाना कहीं हंसने का तो लोग जलते रहे
चरित्र तो जैसे कोई शीशा हुआ, जीसे लोग अपने ही रंगों मे रंगते रहे
जिसका जी चाहा,उसने उस दर्पण को धूमिल किया
अपनी तार- तार बातो से,चरित्र को दागदार किया
हम तो पागल , उस शीशे के धुन्दला होने पर
सिसकते और रोते रहे
ये न पता था कि ये तो बस शौक ह लोगो का
उछालना कीचड़ दूसरो पे , खुद का कम साधने को
मगर हम लोगो कि बातो से बस डरते रहे
दूसरो से गिला इतना नहीं मगर
जब दिल का हाल किसी अपने से कहा , तो ये जवाब मिला
जरूर तुम्हारे तौर तरीके , अलग से ह जुदा से ह
जो लोग तुमको सही न जानते ह
हम चुप चाप अपनों के इल्जाम भी सुनते रहे
अश्क दिखाए जो अपनों को , तो अपनों ने कहा
आंसू हल नहीं ह किसी भी चीज का
जज्ब कर के आंसू फिर हम
सुबकते रहे, उफ़ न कि हमने और हम फिर
खुद को बदलते रहे
हम इतना बदल चुके ह, और बदल रहे ह खुद को
जिन्दगी को प्यार करने कि जगह उससे नफरत करने लगे
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कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Tuesday, December 14
Saturday, December 4
आज का विचार
कहू क्यों मै अपनी पीर किसी को, जब कोई समझे न मेरी पीर
दुखड़ा मेरा ,कोई न समझे बस समझे रघुवीर
दुखड़ा मेरा ,कोई न समझे बस समझे रघुवीर
Friday, December 3
aj ka vichar
kabhi
kabhi shuny sa mastishk ,
sab socho ko ektrit kar kuch na sochne ka abhiny karta ha,
asl main wo kisi bhi pratikriya se bachta ha,
parantu wastv main mastishk kabhi vichar vihin nahi ho sakta
kabhi shuny sa mastishk ,
sab socho ko ektrit kar kuch na sochne ka abhiny karta ha,
asl main wo kisi bhi pratikriya se bachta ha,
parantu wastv main mastishk kabhi vichar vihin nahi ho sakta
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