समय का अट्टहास ,और चीखती हुई सी रात
मुझसे कहती है एक बात
कि क्यों नहीं मैं चीख प़ा रहीं हूँ?
क्या इस लिए कि मेरी चीख मैं
पाषानो को भेदने का दम ख़म नहीं है?
क्या इसलिए कि शायद सब तरफ शोर बहुत है,
बस मौन सी जिंदगी जी रहा है,ये शहर ,
मगर पाषाण हृदय, इसके बशर
चीख चीख कर इन्साफ मांग रहीहै
मेरी हस्ती,
मेरी चीख को अपने फायदे के लिए
इस्तेमाल करना चाहती है मगर ये बस्ती
इनके चेहरों से टपकती लार
और मेरे भीतर भरा ये प्यार ,
इनको मेरी भूख दिखा रहा है
ये शोर इन्होने स्वयम ही बढाया है
क्युकी इन्हें लगता है , जब मैं चीख कर थक जाऊंगी
तो कहीं थक कर इनके आगोश में ही जान दे दूँगी
तब ये लोग मुझे आगोश में ले कर
अपनी वासना कि भूख मिटा लेंगे
मगर मेरी प्रेम कि भूख
मरणोपरांत मेरे साथ ही , चली जाएगी
और इसी जग मैं भटकती आत्मा बन कर
घूमेगी, मगर इस से इन्हें क्या
क्युकी ऎसी लाखो करोडो आत्माएं
इन्ही की बदोलत , इस जहाँ में पहले ही घूम रही हा
एक और से इन्हें क्या ?
ए समय तू थम न ,
क्युकी तेरा ठहरना
मेरी असीमित पीड़ा को बढ़ता ही जा रहा है
और मेरा अस्तित्व तार तार होता जा रहा है