Tuesday, May 8

मंजिल की थकान

वो थकी सी थी, हाथ चलने को मन कर रहे थे
पर आँखों मे एक अनोखी चमक थी
वो जिस मंजिल को पाने के लिए , वो दीन रात दोडा करती थी
आज मंजिल वो उसकी उसके सामने थी,
इसलिये इस थकान मै भी, सुंकुं था
आँखों मै जो तृष्णा थी, वो समाप्त हो गाई थी
ओर वो अब थक कर चूर हो गाई थी
पर फिर भी अहसास था ख़ुशी का दिल मै
की मंजिल थी अब उसकी , उसके सामने....

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