कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Wednesday, June 20
जो कभी एक दूजे के लिए बने नही
मेरी आँखों मे दर्द ओर पीरा ह ,
उसकी आंखे निद्रलीन,
मे थकी हू पर नींद नही ह,
पर उसकी आँखों मे खामोशी ह ,
हर रोज सुबह, शाम का द्वंद ,
हम दौनो कुछ तीखे प्रश्नों से
खुद को बचाते ह
फीर भी कभी अगर कुछ कह जाते ह
तो कलह ही होता ह
ओर शांत हमारा जीवन, हलचल से भरता ह
पर क्या ये जीवन जो शांत लगता ह
शांत ही ह क्या?
इसमे उथल, पुथल दिखती नही
मगर इस खामोशी मे छुपा ह दर्द सा,
ना मे अपने भावो को कह पाती हू तुमसे
ना तुम मेरी वेदना समझते हो कभी
ना मुझसे कहते हो, कोई बाते अनकही,
फीर कैसा या बन्धन, dhoo रहे ह हम भी
कुछ भी तो हम_मे एक सा नही
फीर क्यों मिल गाये दो अनजान एक पथ पर ही,
जो कभी एक दूजे के लीया बने थे ही नही,
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