कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Friday, August 10
दीन कैसे गुजरता ह
दीन कुछ अभिलाषाये कर आता ह शाम ढलते ही धुन्दल्का छाता ह दिनयु गुजर रह ह जैस शायद अगले क्षण कीरण आये रौशनी की कहीँ से
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