Monday, February 25

वो रात

वो काली थी बहुत,अँधेरी भी थी
और uspar
भी वो तनहा और लम्बी थी,
मैं अकेली थी,मैं तनहा थी उस रात मैं
वो मेरे साथ ही था, पर मैं फीर भी तन्हा थी

एक एक पल जो गिन गिन कर मैने गुजरा था
एक एक लम्हा जो हमारा था,तड़प भरा था
मैं अकेली थी,मैं तनहा थी उस रात मैं
वो मेरे साथ ही था, पर मैं फीर भी तन्हा थी

मैं सिसकियाँ ले रही थी,वो ऊँघ रहा था
बेजुबान आंसू भी नही थे, की उसने सुने न हो पर
मैं अकेली थी,मैं तनहा थी उस रात मैं
वो मेरे साथ ही था, पर मैं फीर भी तन्हा थी

वो रात इसलिए तन्हा नही थी,की मैं तड़प रही थी
वो रात किसी प्रेतात्मा सी, जगी हुई थी,अंतहीन रात
मैं अकेली थी,मैं तनहा थी उस रात मैं
वो मेरे साथ ही था, पर मैं फीर भी तन्हा थी

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