Wednesday, December 10

बहते नीर को समंदर मिल गया

बहते हुए नीर को थामा ह जो तुमने,
इस बहती हवा को रोका ह जो तुमने,
तेरे प्यार मे वो पवित्र ताकत थी बस,
की तुमने मुझ सी पगली पवन को,
प्यार की चार दिवारी मे कैद कर लीया ह,
एक अदृश्य दिवार सी ह, पर फिर भी,
उस दिवार के पार कुछ भी नजर,
आता नहीं ह, मुझे कुछ भी लुभाता,
बहलाता, और फुसलाता नहीं ह,
कोई रंगीनिया अब मुझे खींचती नहीं
कोई खुश्बू भी बदन को भींचती नहीं ,
तुम ही मुझे अपनी muthi मे किये हो
ए सजन तुम मेरे न हो के भी मेरे हो,
अब इस बहते नीर को समन्दर मिल गया ह,
अब मेरा भी आशियाँ बन गया ह,
बस ए रब, ये आशियाँ बनाये रखना
is बहते नीर को समन्दर मे समेटे रखना

1 comment:

Meri Ankahi Dastaan said...

bahtey hue neer ko thama hai tumne
bahti hawa ko roka hai tumne

koi ranginiya ab muje khichty nahi
koi khushbu bhi badan ko bheenchty nahi

wah wah..bahot umda...