कागज पर ढल आई ह मेरे अक्स की स्याही.
मॆं कुछ और नहीं बस एक रचना हूँ उसकी,
उसने कुछ रंग भर दिए ह मुझमे
जिन्हें मॆं जीवन के कागज पर रहती हूँ लिखती
उसने जाने किस काम को भेजा ह मुझे
ये तो मुझे मालूम नहीं
मगर कह सकती हूँ मॆं इतना ही
की इस कलम ने लिखा ह वोही
जो लिखने का आदेश दिया ह मेरे प्रभु ने ही
एक आवाज मुझे हर वक्त रास्ता दिखाती ह
ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाती ह
ये आवाज ह मेरे उस रचनाकार की
उसका होना मेरे साथ मै महसूस हूँ कर सकती
मॆं तो कुछ भी नहीं बस एक रचना
हूँ उसकी
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