कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Saturday, May 8
मुझे चेहरा देख के आदमी पहचानना आ गया बहुत खाए ह धोखे इसलिए धोखे बाजों को जानना आ गया
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