आज कि दुनिया मे भी चाहे औरत का ओहदा बढ गया हो , उसने अपनी महन्त और लगन से चाहे जो भी मंजिल हासिल की हो मगर आज भी उसकी उन्चयियो को उसके चरित्र से जोड़ कर देखा जाता ह, वो उन्चयियो तक पहुँचने के ललक भी नहीं छोड़ सकती और न ही अपने अन्दर कि घुटन को बयां कर सकती ह:
अश्क बहते रहे और शब्द कडवे होते रहे
लोग बदल जाने को मुझे बार बार कहते रहे
मॆं रोज घुटती रही और कभी खुद को बदलती रही
इतना बदल गयी कि हँसना भी भूल गयी
एक तो पहले ही हंसने के बहाने कम थे जिन्दगी मॆं'
जो मिला एक भी बहाना कहीं हंसने का तो लोग जलते रहे
चरित्र तो जैसे कोई शीशा हुआ, जीसे लोग अपने ही रंगों मे रंगते रहे
जिसका जी चाहा,उसने उस दर्पण को धूमिल किया
अपनी तार- तार बातो से,चरित्र को दागदार किया
हम तो पागल , उस शीशे के धुन्दला होने पर
सिसकते और रोते रहे
ये न पता था कि ये तो बस शौक ह लोगो का
उछालना कीचड़ दूसरो पे , खुद का कम साधने को
मगर हम लोगो कि बातो से बस डरते रहे
दूसरो से गिला इतना नहीं मगर
जब दिल का हाल किसी अपने से कहा , तो ये जवाब मिला
जरूर तुम्हारे तौर तरीके , अलग से ह जुदा से ह
जो लोग तुमको सही न जानते ह
हम चुप चाप अपनों के इल्जाम भी सुनते रहे
अश्क दिखाए जो अपनों को , तो अपनों ने कहा
आंसू हल नहीं ह किसी भी चीज का
जज्ब कर के आंसू फिर हम
सुबकते रहे, उफ़ न कि हमने और हम फिर
खुद को बदलते रहे
हम इतना बदल चुके ह, और बदल रहे ह खुद को
जिन्दगी को प्यार करने कि जगह उससे नफरत करने लगे
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3 comments:
bahut hi khoobsurati se likha hai aapne..
mujhe bauhu pasand aaya..
Please visit my blog..
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2) "मन एक पारदर्शी कांच के पात्र के समान है, जो भी चीज इसमें डाली जाती है, ये उसको स्वत ही दर्शाता है। क्यों न मन में ईशवर को रखा जाए ?" --------Narayan 05.08.10
10)"जब भी कभी ज्ञान रुपी दीपक हमारे हृदय में जलता है तो कीट पतंगों की भांति अनेकों दुःख तकलीफ उस प्रकाश की ओर तेजी से निकल निकल कर आतें हैं व् नष्ट होते जातें हैं."------Narayan 09.08.08
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