Sunday, February 20

एक सम्पूर्ण स्त्री

कभी मेरी माँ ने मुझे कहा बनो एक सम्पूर्ण स्त्री ,
कभी मेरे पिता ने मुझे परिपूर्ण कामकाजी औरत बनने की सलाह दी,
कभी किसी ने मुझसे एक अच्छी माँ बनने की उम्मीद की,
कभी किसी ने मुझे एक सुघड़ गृहणी बनने की आशा की,

मैं अनजाने में उनकी इच्छाओ को बना उद्देश्य चलती गयी
और अनवरत अधूरेपन के ग़म को पाले रही
खुद की अपूर्णताओ  को छुपा छुपा के जीती रही
कभी अच्छी माँ , कभी अच्छी बीवी,
कभी अच्छी गृहणी, और कभी अच्छी खानसामा
काफी कुछ बनी, पर बहुत कुछ नहीं बन पाई

....................अधूरी कविता





7 comments:

kunwarji's said...

शानदार जी,बहुत ही बेहतरीन.....

अधूरी कविता..............???

हुह..
अधूरेपन को पूरा का पूरा दर्शाती पंक्तियाँ.....
अब और क्या कहूं..
कुंवर जी

shaveta said...

thanks kunwar ji

Anonymous said...

गहन चिंतन ....

Unknown said...

too much of expectation frm d women....lekin woh bhool jati hai ki woh khud kya hai aur kya chahti hai??????

Navin said...

This happens when you believe "what other think is important..."

It is THE MOST important what you think about you...

kant sharan said...

yek chij kahin agar chhut jati hai to wo hai mahilaon ke liye swanirnay lene ki azadi............I like ur poem.

surkhiyan said...

kabhi na puri hone wala manthan

ardhiya