कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Saturday, June 25
Sunday, June 12
मु ट्ठी भर अस्तित्व
ऐ आकाश तुम विस्तृत हो,
अथाह और अनंत हो,
मैंने स्वेच्छा से तुम्हे,शिदत्त से चाहा हैं !
और मैं जानती हूँ की
,तुमने भी मुझे ,शिदत्त से चाहा हैं
,तुमने भी मुझे ,शिदत्त से चाहा हैं
मगर एक अद्भुत सत्य मेने समझा हैं जो,
अगर इजाजत हो , तो मुझे कहने दो,
तुम चाहे अनंत हो!
मगर तुम्हारा मु ट्ठी भर अस्तित्व भी,
तुमसा ही हैं , इसलिए अगर मैं चाहूं तो,
क्यों न उस मु ट्ठी भर आकाश में ही,
संतुष्ट रह जाऊं ,और अगर चाहूं तो
पूरे के पूरे तुम भी कम हो ,
मेरे अंतर की भूख मिटाने को!
Subscribe to:
Posts (Atom)