कितनी अनकही सी बातें हैं ,
अब मुझे कह लेने दो, की आवाज पा ली है मैंने ,कितनी अनबुझ पहेलीया थी जीवन मैं मेरे,
अब उन उलझनों की गुत्थी सुलझा ली है मैंने ,
मैं उलझी रही हूँ,इतने बरस खुद को समझने मैं
अब लगता है एक राह पा ली है मेने
कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page