वोही लोग जो पत्थर मारा करते थे कभी
वोही लोग हैं जो अज मुझे तारीफों के पुलों मैं रखा करते ह
वोही लोग ह जो फर्शो पे भी पाँव न रखने देते
वोही लोग ह जो अर्शो पे बिठाये फिरते ह
ये तो एक दस्तूर ह ज़माने का
जानते ह की लोग बस चढ़ते सूरज को सलाम करते ह
इन लोगो को भी तुम कभी न समझोगे
ये तो बस भीड़ मैं कभी भी चल देते ह
जिस दिन जिधर झुण्ड चलता ह
बस उधर मुह उठाये तुरंत चल देते ह
भीड़ मैं तो हर कोई चला करता ह
हम वो मस्ताने ह जो बस अपनी धुन में चला करते ह
3 comments:
mastana wahi jo apni dhun naa chhode
accha likah hai
bahut sahi kaha bas chalate rahane ka nam jindagi h
http://aroonk2011.blogspot.com/
rachanaakaar vahi hotaa hai jo apni rah svyam banaataa hai
bheed kaa ang nahi samaaj ko nayaa vichar deta hai
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