Sunday, February 26

जर्रे जर्रे में मेरा दर्द बहा नदी की तरह ,

जर्रे जर्रे में मेरा दर्द  बहा नदी की तरह ,
खून पानी बन गयाहै   मेरा,
मैं हर रोज रोती हूँ  किस्मत पे अपनी,
न चैन रात को है , न दिन को किसी भी तरह 
एक अनचाहा सा रिश्ता खींच  रही हूँ,
जिसमे बस दर्द बसा है  केवल,
 मगर मैं खींच रही हूँ उसे एक  कुली की तरह
जो लोग मेरे अपने होने का दम भरते है,
वो भी बन गए है देखो अजनबी के तरह
न  मर पा रही हूँ न मैं  जी सकती हूँ ऐसे ,
जब हर दिन गिरता हो , बिजली की तरह
 सारा दिन थक हार के जब मैं सोती हूँ,alt
बिस्तर लगता है कंटीली झाडी की तरह ,
ऐ रस्मो रिवाज की दुहाई देने वालो,
कभी तो अपना लो मुझे  औलाद या  बेटी की तरह,
 मैं एक इंसान हूँ देवी नहीं
न इम्तेहान लो मेरा शिवजी की तरह
मैं खुदा नहीं हूँ की जहर पीलूंगी   हर पल
 कभी तो वो जहर उगलेगा ,ज्वालामुखी की तरह !

Wednesday, February 1

ऐ पथिक मुझे थकना नहीं है


ऐ पथिक मुझे थकना नहीं है, मैं थक गयी तो कैसे मंजिल पाऊंगी ?
मैं सो नहीं पाती रात दिन,ये बीमारी नहीं कोई बस मेरी आँखों के है स्वप्न ,
क्युकी ये मुझे सोने नहीं देते हैं, हर वक्त तड़पाते है , रोने भी नहीं देते है
मुझे आकाश भी छूना नहीं है,बस एक मेरा है स्वप्न ,
मेरे दो आँखों के तारे है, उनकी आँखों में स्वप्न बहुत सारे हैं,
जिनके लिए मैं तत्पर हूँ, कर गुजरने को कुछ भी ,
ये ही मेरी आँखों का है स्वप्न , जिनके लिए मैं जी रही हूँ पल पल 
 ए पथिक मुझे थकना नहीं है ......
क्युकी गर मैं थक गयी तो उन नन्हे सपनो को कौन संवारेगा ?