Saturday, May 12

अतीत-3

अतीत की छांव पर हक़ीकत की धूप,
हर घड़ी चमकती ह...
जितना मै बचना चहू, इस गम की धूप से
ये मुझ पर जलती ह
मै अधूरे से सपने आंखे मै लिए बैठी हू
इन अधूरे सपनों मै एक याद उभरती ह
कब तक हम अतीत मे जीते रहेंगे?
कब वर्तमान मै कदम हम रख सकेंगे

1 comment:

shaveta narula said...

bahut khob likha ha apne... bahut ache